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स्वरचित हिन्दी कहानी प्रतियोगिता - Dec, 2022
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नियुक्ति

Writer: H.P.Sarkar, Dhaleswar-13, Agartala, Tripura (W)

✿ एक गांव में दो दोस्त रहेते थे। पलाश और विनय। दोनों पंडित, बुद्धिमान, साहसी और बलवान थे। उनकी बातें धीरे धीरे राजा के कानों तक पहुँचीं । फिर एक दिन राजा का बुलावा आया। गांव में उनके सम्मान और बढ़ गए। उस गांव से राजधानी बहुत दूर थी। पाँच दिनों तक पैदल चलना पड़ता था। दोनों ने साथ में खाने-पीने का सामान लेके गाँव वालों से बिदाई लेके राजधानी की ओर चल दिए।

रास्ते में बहुत सारे गाँव , बहुत सारे नगर को पार करते हुए वे लोग दिन ढलते ही एक मंदिर के सामने पहुँचे। दोनों वहीं मंदिर में रात गुजारे। मच्छरों ने उन्हें रात भर सोने नहीं दिया। फिर सुबह होते ही बेमौसम जोर से बारिश होने लगी। बेमौसम बारिश के कारण रास्ते ख़राब हो गए, फिसलन बढ़ गई। दोनों बहुत तकलिफ में चलने लगे। अगली रात उनको रहने के लिए कोई जगह नहीं मिली तो दोनों एक पेड़ के नीचे सो गए। ऐसे ही चलते चलते दोनों आखिरकार राजदरबार के सामने पहुँच ही गए। अगले दिन सही समय पर दोनों को राजदरबार में लाया गया।

सभी सभासद इन दोनों के ज्ञान, प्रतिभा और व्यवहार से बहुत ख़ुश हुए। राजा को भी बहुत अच्छा लगा और उन्होनें दोनों को राज कार्य में नियुक्त करना चहा। राजा ने राजगुरु से आग्रह किया कि दोनों को सही काम बाँट दिया जाए। राजगुरु ने विनय को बाहर इंतजार करने के लिए कहा। विनय राजदरबार से बाहर चला गया। तब राजगुरु ने पलाश से पूछा “ तुम दोनों इधर कैसे आए ? तुमरी यात्रा कैसी रही ? ”

पलाश ने बोलना चालू किया “ गुरुदेव , यात्रा ख़ूब ख़राब रही। रात को हम सो नहीं पाते थे। हर जगह इतने मच्छर थे। सड़कों की भी बहुत बुरा हाल है। एक दिन रात को हमें सोने की जगह ही नहीं मिली , तो हमें एक पेड़ के नीचे सोना पड़ा। बहुत जगह पे पानी की कमी है तो कहीं खाना मिलना मुश्किल है। ” पलाश बोलता गया और राजगुरु ध्यान से सुनते रहे। इसके बाद विनय को अंदर बुलाय गया और पलाश को बाहर रुकाया गया।

विनय से भी राजगुरु ने जब वहीं सवाल किए जो पलाश से किए थे , तब विनय ने बताया “ राजगुरु , हमारी यात्रा बहुत ही अच्छी रही। हमने इस दौरान कितने नए गाँव देखेँ , कितने नए नगर देखें , कितने ही नए लोगों से मुलाकात हुई। यह एक अलग अनुभव है। ” उसकी बातें सुनके हर कोई आश्चर्यचकित रह गया।

राजगुरु : रात को सोने के लिए तकलीफ नहीं हुई ? क्या मच्छर नहीं थे ?
विनय : जी हाँ , मच्छर तो थे , पर मैं उनकी तरफ ज्यादा ध्यान न देते हुए अच्छी तरह चादर ओढ़ के सोया था और ख़ुशी के स्वप्ने देख रहा था। मैं सोच रहा था कि कैसे मैं महाराज से मिलूंगा ? क्या बातें करेंगे ? ये सोचते हूए मैं आसमान के सुंदर सुंदर तारों को देख रहा था।
राजगुरु : रास्ते भी तो ख़राब थे ? चलने में तकलीफ नहीं हुई ?
विनय : जी नहीं , मुझे चलने में कोई तकलीफ नहीं हुई। मैं तो सुंदर सुंदर पेड़ पौधों को देख रहा था। उनमें बैठे हुए पंछीओं के गाने सुन रहा था। वे एक अनोखा अनुभव है।
राजगुरु : और खाने-पीने की तकलीफ ?
विनय : सफर में थोड़ी तकलीफ तो होती ही है। नई जगह , नए रास्ते , थोड़ी तकलीफ तो स्वाभाबिक है।
सभी सभासद वा: वा: करने लगे।

बाहर से पलाश को भी अंदर बुलाया गया। राजगुरु ने दोनों को अलग-अलग काम दिआ। पलास को अलग-अलग राजकार्यों का निरीक्षण का काम सौंपा गया। बहुत सारी जन-योजनाओं में भी उसको शामिल किया गया। और विनय को शिक्षा और साहित्य के काम सौंपे गए। देश की शिक्षा-विकास-योजनाओं में उसको शामिल किया गया। पलाश और विनय राजदरबार से चले जाने के बाद महाराज ने राजगुरु से पुछा कि वे कैसे दोनो को सही काम बांट के दिए।

राजगुरु: महाराज , ये दोनों ही ज्ञानी और बुद्धिमान हैं। पर इनके विचार अलग हैं। पलाश का जो विचार है उससे वह राजकर्यों में दोष निकालेगा ही। इससे हमें पता चलेगा हमारी गलती किधर हुई है और हम उसे ठीक कर सकते हैं। इससे देश को लाभ होगा। साथ ही विनय का जो विचार है, वह शिक्षा और साहित्य में अच्छा काम कर सकता है। वह छात्रों के मन में एक नए स्वप्न, नई आशा और नई उम्मीद जगा सकता है जो आगे चलकर एक सुंदर और सशक्त राष्ट्र निर्मान कर सकता है। राजगुरु की बातें सुनकर सब धन्य धन्य करने लगे।
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