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अकेलापन

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स्वरचित हिन्दी कहानी प्रतियोगिता - Dec, 2022
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अकेलापन
Writer - विनीता मोहता, विदिशा, मध्य प्रदेश


# अकेलापन
लोगों की भीड़ के बीच में भी आज रामप्रसाद जी को अकेला महसूस हो रहा था। ऐसा लगा मानो उनकी पूरी दुनिया उजड़ गई। कुछ बोलने और समझने की स्थिति में नहीं थे। इस मनोदशा के दौरान खुद से बात करते हुए रामप्रसाद जी अतीत में पहुँच गए।

"कुसुम कहां हो तुम, कुसुम... कब से तुम्हें आवाज दे रहा हूं।"

किचन से हाथ पोछते हुए मिसेस रामप्रसाद बाहर निकली और अपने चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट ला कर बोली, "वैसे तो मां-बाप ने मेरा नाम बहुत ही खूबसूरत कुसुम रखा है। मगर आपके मुंह से अपना नाम सुनकर ऐसा लगता है मानो..."कहते हुए कुसुम चुप हो गई। मगर उसका हाथ अपने हाथ में लेकर रामप्रसाद जी बोले, "मानो क्या!! कुसुम कैसा लगता है तुम्हें अपना नाम मेरे मुंह से? बोलो..."

कुसुम जी शर्मा कर अपना चेहरा अपने दोनों हाथों के बीच छुपा लिया और फिर धीरे से मुस्कुरा कर बोली, "छोड़िए यह सब बातें, अभी बेटे-बहु आते होंगे, और आप और हम क्या बातें लेकर बैठ गए। बताइए क्यों आवाज दे रहे थे।"

रामप्रसाद जी भी जोरों से हंसते हुए बोले, "हां भाई अब तो बेटे बहू का जमाना है। हम तो तुमसे प्यार भरी बातें भी नहीं कर सकते। यह लो तुम्हारी बहू की पसंद की गरमा-गरम जलेबी, बेटे के पसंद के बूंदी के लड्डू और पोते के लिए बटरस्कॉच आइस क्रीम; और कुछ रह गया हो तो बता दो, फिर मेरे साहबजादे के आने के बाद मैं बाजार का कोई काम नहीं कर पाऊंगा। आखिर उससे कितनी सारी बातें जो करनी है।"

यह सुनकर कुसुम जी मुस्कुराते हुए बोली, " हां, मुझे ताने मारते हो... और मुझसे ज्यादा बेटे बहू के आने का इंतजार खुद करते हो... आखिर आपके लाड साहब आ रहे है, अब तो आपका सारा समय उन्हीं के साथ बीतेगा। कितने दिन हो गए प्रद्युम्न से मिले। हमारा पोता है, मगर हम ही उससे मिलने को तरस जाते हैं," कहते हुए उन्होंने एक आह भरी।

उनकी आह पर मुस्कुराते हुए रामप्रसाद जी ने उन्हें साइड हग देते हुए कहा, " कुसुम जी, अब तो यही हमारी जिंदगी है। साल में एक बार आकर बेटे बहू कम-से कम हमें कुछ पलों के लिए ही सही पोते का सुख तो दे देते हैं। पास वाले शर्मा जी तो पिछले 3 बरसों से अपने बच्चों को मिलने को तरस रहे हैं।"

कुसुम जी ने रामप्रसाद जी के हाथ का समान लेकर अपनी जगह से उठते हुए कहां, "आग लगे ऐसी विदेश की नौकरी को, ना हम वहां जा सकते हैं, ना बच्चे यहां सकते हैं।"

रामप्रसाद जी ने कुसुम जी का हाथ पकड़ा और कहां, "शादी के बाद जो गृहस्थी की गाड़ी में उलझे कि तुम्हें सुकून के कुछ पल ही नहीं दे सका। सोचा था, रिटायरमेंट के बाद बेटा बहू गृहस्थी संभाल लेंगे तो हम दोनों कम-से कम एक दूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिता पाएंगे। मगर मुझे माफ कर दो, शायद मैं तुम्हारे लायक ही नहीं था। कोई खुशियां तुम्हें दे ही नहीं पाया।"

रामप्रसाद जी कुछ और कहते, कुसुम जी ने उनके मुंह पर हाथ रख कर कहा , "आप के साथ जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, मगर यह बात तो सोलह आने सच है कि आप से बेहतर जीवनसाथी कोई नहीं हो सकता।"

तभी दरवाजे पर घंटी बजी। कुसुम जी अपने आंखों के आंसू पोछते हुए कहां , "लीजिए आ गए आपके साहबजादे। अब तो आपके पास हमारे लिए समय ही नहीं होगा।"

दरवाजा खोलते ही छोटा सा प्रद्युम्न राकेश की गोद से उतर कर रामप्रसाद जी की गोद में आ गया। उसे इस तरह जाते देख राकेश उसे रोकते हुए बोला, "बेटा अभी ट्रैवल करके आए हैं। हाथ मुंह धो लो उसके बाद दादा के पास जाना।"

मगर रामप्रसाद जी मुस्कुरा कर बोले, "यह सब हाइजीन तुम्हें मुबारक, हम तो ऐसे ही ठीक है।"

मगर प्रीति को यह सब अच्छा नहीं लगा, उसने जबरन प्रद्युम्न को अपनी गोद में लिया और वॉशरूम में ले जाकर उसे नहला दिया। इस बार राकेश ओर प्रीती दोनो ही बदले-बदले से नजर आ रहे थे। दोनों ने रामप्रसाद जी और कुसुम से ज्यादा विशेष बात भी नहीं की। प्रीति तो सफर की थकान का बहाना बनाकर अपने कमरे में ही खाना ले कर चली गई। शाम को डिनर टेबल पर प्रीति ने राकेश को कुछ इशारा किया मगर राकेश उसे चुप रहने को कहा। उन दोनों के इशारों को देख कर रामप्रसाद जी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उन्होंने उसकी पीठ पर मारते हुए कहा, "बरखुरदार तुम लोगों को कब से इस तरह शर्म आने लगी। कहो क्या बात है जो इस तरह आंखों-ही आंखों में इशारे हो रहे हैं?"

यह सुनकर राकेश ने खाना खाना छोड़ दिया और बोला, "डैड बात को घुमा फिरा कर करने से कोई मतलब नहीं है। इस बार मैं और प्रीति केवल 2 दिन के लिए यहां पर आए हैं। और मैंने यूएसए में एक मकान देखा है, कब तक किराए के मकान में रहूंगा। कुछ पैसों का बंदोबस्त मैंने कर लिया है और कुछ पैसों के बंदोबस्त के लिए मैंने यह घर बेचने का फैसला किया है। वैसे भी आप दोनों अकेले ही रहते हैं इतने बड़े घर का क्या औचित्य। इस घर को बेचने से जो पैसा आएगा आप लोगों के लिए एक फ्लैट खरीदने के बाद मैं वहां पर अपना मकान खरीद लूंगा।"

यह सुनकर रामप्रसाद जी अपनी जगह से खड़े हो गए और बोले, "खबरदार जो इस घर को बेचने के बारे में सोचा भी!! यह घर नहीं मेरे पूर्वजों का आशीर्वाद है। मेरे जीते जी यह नहीं हो सकता," कह कर वह अपने कमरे में चले गए। उनके जाने के बाद कुसुम जी बोली, "बेटा, तुमने यह सोच भी कैसे लिया कि यह घर बेच दोगे! कम-से कम एक बार अपने पापा से बात करने के पहले मुझसे तो बात कर ली होती। वे इस घर से दिल से जुड़े हुए हैं। तुमने आज ना केवल उनका दिल दुखाया है, बल्कि उनकी भावनाओं को भी ठेस पहुँचाई है," कहते हुए कुसुम जी भी उनके पीछे-पीछे कमरे में चली गई।

प्रीति गुस्से में बोली, "मैंने तुम्हें पहले ही कहा था, यह लोग हमारी खुशियां नहीं चाहते! देखा, किस तरह हमारी खुशियों को मना कर दिया। मगर तुम मेरे मॉम डेड से मदद लेने के बजाय अपनी मॉम डेड से मदद लेने यहां चले आए... इतना तमाशा होने के बाद भी तुम्हें उम्मीद है कि यह लोग तुम्हारी मदद करेंगे तो तुम यहां रहो। मैं कल अपने मॉम डैड के यहां जा रही हूं," कहते हुए प्रीति अपने कमरे में जाकर अपना समान जमाने लगी।

अगली सुबह कुसुम जी जब सबके लिए ब्रेकफास्ट तैयार कर रही थी तभी राकेश अपना सारा सामान लेकर कमरे से बाहर आया और बोला , "मॉम हम लोग जा रहे हैं।"

कुसुम जी को कुछ समझ ही नहीं आया कि वह क्या बोले, मगर रामप्रसाद जी गुस्से में उसकी ओर देखकर बोले, "तुम क्या समझते हो इस तरह हमें छोड़ कर चले जाओगे तो हम डर कर तुम्हारी बात मान लेंगे। मगर यह हमेशा याद रखना, तुम्हारी इन हरकतों का मुझ पर कोई असर नहीं होगा।"

"हां वह तो मुझे पता है, आपको जिंदा इंसानों से ज्यादा मरे हुए लोगों की फिक्र है। आज के बाद आप यह समझ लेना आपका बेटा भी मर गया, शायद तब आपको उसकी फिक्र होने लगे," कहते हुए राकेश प्रीति का हाथ पकड़ कर घर से बाहर निकल गया।

कुसुम जी अपनी जगह पर धम्म से बैठ गई। उन्होंने राकेश की बात को दिल से लगा लिया और उसी दिन के बाद से उन्होंने बिस्तर पकड लिया। कुछ दिनों के बाद रामप्रसाद जी ने प्रद्युम्न और राकेश से बात करने के लिए फोन लगाया। मगर राकेश ने उनके फोन का कोई रिप्लाई नहीं दिया। कुसुम जी के अंतिम समय तक रामप्रसाद जी राकेश को फोन लगाते रहे मगर राकेश ने फोन नही उठाया। तभी उनके आसपास कुछ शोर होने लगा उस शोर से वे अतीत से वर्तमान में लौट आए। लोग बोलने लगे, "यह तो बहुत गजब हो गया, कुसुम जी के साथ-साथ रामप्रसाद जी भी इस दुनिया से चले गए!!"

रामप्रसाद जी यह सुनकर आश्चर्य से लोगों को देखने लगे और जोरों से बोले, "मैं कहीं नहीं गया, मैं यही तो खड़ा हूं!"

मगर फिर उनकी नजर अपनी डेड बॉडी पर गई जिसे कुसुम जी की डेड बॉडी के पास लेटाया जा रहा था। सभी लोग उन दोनों के प्यार की मिसाल दे रहे थे। रामप्रसाद जी मुस्कुराते हुए आसमान की ओर देखकर बोले, "कुसुम तुम्हारे बिना तो दो पल भी रहना मेरे लिए मुश्किल हो गया था। अपना यह साथ सात जन्म तक बनाए रखना, अकेलेपन से डर लगने लगा है..."
( समाप्त )


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