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स्वरचित हिन्दी कहानी प्रतियोगिता - Dec, 2022
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पिंघला हुआ ख्वाब
Writer: Priyanka Gaur, Ghodasar, Ahmedabad
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पिंघला हुआ ख्वाब
Writer: Priyanka Gaur, Ghodasar, Ahmedabad
"यह क्या हो रहा है?" मैं जोर-जोर से बोलने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने गर्म आंच पर रख दिया हो। मैं करहाने लगा, "ओह! कोई है?" मुझे लगा मेरा अंत समय अब समीप है। मैंने कस के आँखें बंद कर ली और स्मृतियों में खो गया।
कुछ वर्ष पहले की बात है। तब मेरा नाम 'नया ख्वाब' हुआ करता था। मेरा मालिक, मेरे लिए सब कुछ करता था। ऐसा लगता जैसे मैं ही सर्वस्व हूँ। मुझे पूरा करना ही उसका लक्ष्य है। जितना सम्मान मिला, उतना ही अभिमान भी आ गया। एक रोज कांच के एक ख्वाब को टूटा हुआ देख के मैंने पुछा, " तुम्हें क्या हुआ?"
"पूरा न हो सका, तो टूट गया," वह बोला।
"क्यों?"
"मेरे जैसे ख्वाब बहुत नाजुक होते हैं। हल्की-सी ठोकर से ही चकनाचूर हो जाते हैं। बहुत संभाल के रखना पड़ता है हमें। तुम तो द्रव्य रुपी ख्वाब हो जिनका स्वरुप बदलता रहता है। तुम मालिक के साथ हमेशा रहते हो। साधारण ख्वाब होते हो न..." इतना कह कर वह सदा के लिए खामोश हो गया।
"साधारण हूँ? नहीं मैं साधारण नहीं हूँ। मैं ठोस हूँ, यदि नहीं भी हूँ तो बन जाऊँगा," मैंने संकल्प किया।
अब मैं ठोस बनने लगा। आसपास का तापमान कम कर दिया और सुन्न–सा रहने लगा। मेरा मालिक बहुत परेशान हुआ परन्तु मैं तो ठोस बन रहा था। कुछ ही समय में मैं बर्फ जैसा हो गया। पर मेरा दुःसाहस तो देखो, मैं स्वयं को कांच समझने लगा था।
एक दिन मैंने सुना, मेरा मालिक कह रहा था कि "अब मैं और नहीं सह सकता। मेरा द्रव्य–सा ख्वाब अब पत्थर बन गया है। पहले मैं आराम से उसे पूरा करता रहता था। जबसे उसने अपना स्वरुप बदला है, मुझे उसे पूरा करने में दिक्कत आ रही है। अब या तो मुझे उसे पूरा ही करना पड़ेगा या फिर..."
मैं मुस्कुरा उठा और एक नजर मैंने पूरे हो चुके ख्वाबों को देखा – कैसे सजे-धजे बैठे हैं। पूर्णता लिए हुए। मैं भी बस वहीं जाने वाला था। पर कल...
"बहुत हो गया!!" मेरा मालिक गुस्से से गरजा। और अब मैं पिंघल रहा था। मेरे मालिक ने मुझे जला दिया था, मैं कांच नहीं ठोस बना द्रव्य था इसीलिए पिंघलने लगा।
कुछ समय बाद सब शांत हुआ और कुछ दिनों बाद मैं शांत हुआ।
अब नए ख्वाबों का आवागमन होने लगा था। एक ख्वाब ने मुझसे पूछा, "लगता है आप कोई पुराने ख्वाब हैं, क्या हमें कुछ सीखा सकते हैं?"
मैंने उसे गौर से देखा और कहा, "ख्वाब कोई भी हो, उसका लक्ष्य पूरा होना होता है। उसके लिए तुम्हारा मालिक जो भी करे, उसमें सहयोग करना। अड़ना नहीं या लड़ना नहीं। तुम नवीन हो इसलिए अपना समय अच्छे से जियो और सभी का सम्मान करो। जो पूरे हो गए उनका भी और जो अधूरे रह गए उनका भी।"
नया ख्वाब मुझे देखने लगा और मुस्कुरा के बोला "आप कौन से ख्वाब हो?"
मैं शून्य को निहारते हुए बोला, "मैं...मैं एक पिंघला हुआ ख्वाब हूँ।"
( समाप्त )
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