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सदाचार

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स्वरचित हिन्दी कहानी प्रतियोगिता - Dec, 2022
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सदाचार

Anonymous

✿ एक गांव में एक पंडित रहते थे। वे विद्वान और सदाचारी थे। उस शहर के प्रजा उनसे बहुत प्यार करते थे , उनका ख़ूव सम्मान करते थे। उस देश के राजा भी उनको सम्मान करते थे। इस वजह से राजदरबार में उनका हमेशा आना-जाना रहता था।

एकदिन उन्होनें सोचा “लोग मुझे क्यों चाहते हैं ? वे लोग मेरी पढ़ाई-लिखाई को सम्मान करते हैं या मेरे सदाचार को सम्मान करते हैं ? इसका उत्तर मुझे चाहिए। ”

अगले दिन बे राजसभा में गए, लौटते वक्त राजकोष से चुपके से एक सोने की मुद्रा ले गए। लेकिन राजकोष के अधीकारि ने उन्हे ऐसा करते देखलिया। अधीकारि ने सोचा कोई ज़रुरी काम होगा ओर वे जलदी जलदी में बोलना भूल गए।

दूसरे दिन वे पंडित फिर राजसभा में आए और लौटते वक्त फिरसे राजकोष से चुपके से दो मुद्राएँ ले गए। अधीकारि ने आज भी देखा मगर कुछ नहीं बोला। तीसरे दिन भी जब ऐसा हुआ तो अधीकारि ने यह बात महामंत्री को बाताई।

अगले दिन भी वे पंडिन राजसभा में आए। मगर आज महामंत्री उन पर नज़र राख रहे थे। पंडित जब लौटने लगे तब महामंत्री भी उनके पीछे-पीछे छिप-छिप के चलने लगे। महामंत्री ने देखा वे पंडित आज भी चुपके से कई सारी मुद्राएँ लेकर चले गए। यह पंडित तो राजकोष से सोने की मुद्राएँ चुरा रहा है।

महामंत्री ने यह बात महाराज को बातई। तब राज आदेश से उस पंडित को बांधकर राजसभा में लाया गया और सरे प्रजा और सभासद के सामने उनका न्याय किया गया।

सभी ने इस चोरी ओर बेईमानी के लिए उनका प्राणदंड माँगा। तभी वे पंडित ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे। सब लोग आश्चर्य हो गए।

राजा ने उनसे इस हँसी का कारन पूछा। तब वे बोलने लगे “ महाराज , मैं यह जानना चाहता था कि लोग मुझे क्यों सम्मान करते हैं ? वे मेरे सदाचार का सम्मान करते हैं या फिर मेरी पढाई-लिखाई का सम्मान करते हैं? ये बात जानने के लिए ही मैं ने राजकोष से मुद्राएँ चुराई। ” यह कहकर पंडित ने अपना थैला से निकालकर सारी मुद्राएँ राजा को दे दी और कहा “ महाराज मैं ने जाना कि लोग मेरी सदाचार को ही सम्मान करते हैं। क्योंकि जब मैं ने सदाचार छोड़ा लोग मेरी पढ़ाई-लिखाई को भी भूल गए और मुझे प्राणदंड मिला। इसलिए मैं हंस रहा था। ”

राजा के साथ साथ बाकी सब भी असली बात जान गए और पंडित की ख़ूब तारीफ करने लगे।

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