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दो बीजों की कहानी

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स्वरचित हिन्दी कहानी प्रतियोगिता - Dec, 2022
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दो बीजों की कहानी

Writer: H.P.Sarkar, Dhaleswar-13, Agartala, Tripura (W)

✿ एक विशाल वृक्ष के दो बीज थे। एक बीज के अंदर उसकी जड़ और तने में झगड़ा चल रहा था। जड़ ने कहा “ हे तन , मेरा महत्त्व तुझसे ज्यादा है। इसलिए मैं तुझसे बड़ी हूं। मैं अगर मेहनत न करूं तो तुझे एक बुंद पानी भी नहीं मिलेगा। मैं अगर धूल, मिट्टी जकड़के न पड़ा रहूं तो तू खड़ा भी न रह पाएगा। तु तो हवा, धूप , चाँद , सूरज के साथ रहेगा। तितलीओं के साथ , पंछीओं के साथ खेलेगा। और मैं जिंदगी भर अंधेरे में सड़ती रहूंगी। सारा मेहनत करूंगी मैं और तू मज़ा लूटता रहेगा , ऐसा न होगा। ”

ये सुनके तना भी सीना तान के बोला “ हे जड़ , तू क्या मेहनत करेगी ? मेहनत तो मुझे करनी होगी। तू तो जमीन के अंदर सोए रहेगी , सारी मुसीबतें तो मुझे झेलनी होगी। जिंदगी भर कड़े धूप में खड़ा रहना पड़ेगा। तुफानों को सहना पड़ेगा। न जाने कितनी बार लोग मेरी टहनीओं को तोड़ेंगे और मुझे सब सहना पड़ेगा। मैं अगर हवा और सूर्य से रोशनी न लूं तो तुझे खाना भी नहीं मिलेगा। ईसलिए मैं तुझसे बड़ा हूं। ”

दोनों के बीच हर वक्त ‘ कौन बड़ा? ‘ इसको लेकर झगड़ा चलता था। इन दोनों के झगड़े देखकर दूसरा बीज अपने जड़ और तना से पूच्छा “तुम लोग भी आपस में झगड़ा करोगे क्या?” ये दोनों ने बोला “ नहीं, नहीं हम दोनों झगड़ा नहीं करेंगे। हाम दोनों जिंदगी भर साथ-साथ रहेंगे। ”

जड़ ने तना को गले लागाकर बोला “भाई, मैं तो ज़मीन के नीचे चली जाउंगी और तुम उपर चले जाओगे। एक-दूसरे को फिर कभी देख ही न पाएंगे। लेकिन हाम दोनों हर शाम, दिन भर की बातें करेंगे। एक-दूजे का सुख-दुख बाँटेंगे। ” तना भी जड़ को गले लगाके बोला “ऐसा ही होगा। जब तक हम दोनों ज़िंदा रहेंगे एक-दूसरे से प्रेम बनाकर रखेंगे। ”

सही समय पर ये दोनों बीज पेड़ बनके उभरे और बड़े होने लगे। जिस बीज के अंदर झगड़ा चल रहा था बह झगड़ा अब लडाई बन गया। तना को सबक सीखाने के लिए जड़ ने अपना काम बंद कर दिया। तना भी क्यों पीछे रहता। उसने भी जड़ को सबक सीखाने के लिए अपना काम बंद किया। देखते ही देखते एक सुंदर, हरा-भरा, ताज़ा पेड़ सूखने लगा। खुद की मौत को सामने देखके भी दोनों ने अपनी ज़िद नहीं छोड़ी और एकदिन हल्का सा एक झोंका आया और इस पेड़ को गिराके चला गया। यह पेड़ फिर कभी खड़ा न हो सका।

दूसरा जो पेड़ था उसकी जड़ और तना आपस में मिल-जुलके रह रहे थे। एक-दूसरे को अपना अनुभव बताते थे। आज किसने क्या क्या किया! क्या क्या मज़ेदार बातें हुईं! दोनों एक-दूसरे की बातें सुनके खुब हँसते थे। ऐसे ही हँसते खेलते दोनों आगे चलते रहे।

देखते ही देखते दोनों ने एक विशाल, सुदर, मनोहर पेड़ का रूप ले लिया। दूर दूर से पंछी आने लगे। वे दिनभर टहनी में बैठकर गाना गाते थे, नाचते थे, झुमते थे। हजारों रंगीन तितलीयाँ दिनभर पत्तों के पीछे लुका-छिपी खेलते थे। दूर दूर से हवा आके हरे पत्तोंसे लिपट जाती थी। रात को चाँदनी आके उसे रूपाली रंगों से सजाती थी। हर सुबह की किरण एक खुशी लेकर आती थी। एक उम्मीद लेकर आती थी। आज भी वह दौर जारी है।
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