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पढ़ेगा और आगे बढ़ेगा इंडिया

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स्वरचित हिन्दी कहानी प्रतियोगिता - Dec, 2022
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पढ़ेगा और आगे बढ़ेगा इंडिया
( The Winner story of 'नगेन्द्र साहित्य पुरस्कार', Hindi story Writing competition, Dec, 2022 )
Writer: पुष्पेंद्र कुमार पटेल, कटघोरा, जिला-कोरबा, छत्तीसगढ़


# बिजली बिल दफ्तर के चक्कर काटते 50 वर्षीय सुमित साहू को 3 दिन हो गये थे। मीटर बदलवाने हेतु आवेदन वो कई बार लिख चुके और परिणाम के तौर पर बस कागजी घोड़े दौड़ते रहे। हर बार की तरह इस बार भी साहू जी कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करने लगे।

"सुमित साहू आप ही है न!! आपको साहब ने अंदर बुलाया है," अंदर से आवाज आई।

सुना है कोई नया कर्मचारी आया है तभी तो आज अंदर ही प्रवेश मिल रहा, ऐसा सोचते हुए वे अंदर गये। सहसा लगभग 26 वर्ष का नौजवान विद्युत कर्मचारी उनका पैर छूने लगा और कहा, "प्रणाम भैया जी, पहचाना नही!! मैं आपका छोटू...पेंड्रा का रहने वाला। अभी कुछ दिनों पहले ही मेरा बिलासपुर तबादला हुआ है।"

सामने विवेक सारथी (ऑपरेटर) का एक छोटा सा बोर्ड रखा हुआ था।

"छोटू..." ये नाम सुनते ही साहू जी का मन गदगद हो गया और वे अतीत की स्मृतियों में विचरण करने लगे...

#
बी.एड. की पढ़ाई के लिये 25 वर्षीय सुमित परिवारजनों से दूर पेंड्रा में शिफ्ट हुआ और किराये के मकान में रहने लगा। रविवार अवकाश होने से वह अपने कार्यों में लीन था।
"रद्दी पुराने पेपर वाले...लोहा, टीना प्लास्टिक वाले..."
बाहर से आती हुई इस आवाज ने उसका ध्यान भंग किया और उसे स्मरण हुआ कि उसके कमरे में अखबारों का कबाड़ जमा हो रहा है।

"सुनो भैया...रुको..." अखबारों की गड्डियाँ लेकर वह बाहर आया। बचपन से ही उसे अखबार, कहानी, उपन्यास पढ़ने का शौक था और शायद यही वजह थी कि उसने शिक्षा के क्षेत्र को अपने कैरियर के रूप में चुना।

"खाली अखबार ही है क्या बाबू? कॉपी - किताब भी ला दो..." लगभग 40 वर्ष का एक आदमी श्याम मैले- कुचैले कपड़ो में खड़ा था।

"नही भैया। कॉपी-किताब तो पढ़ने के बाद किसी जरूरतमंद को दे देते हैं अखबार ही रख लो..." सुमित ने श्याम से कहा।

"अरे! ला छोटू तराजु ले आ, भैया का अखबार तौल देते हैं।" अपने 10 साल के बेटे को आवाज लगाते हुए वह अखबारों की गड्डियाँ समेटने लगा। टूटे हुए बटन वाली कमीज जो गठरी की तरह कमर पर बंधे थे और रंग उधड़ा हुआ सा हाफ पैंट पहना छोटू तराजू लेकर आया।

"पचास रुपये हुए भैया जी, एकदम सही तौल में बता रहा ..." पचास का नोट थमाते हुए रद्दीवाले ने सुमित से कहा।

"ठीक है... ठीक है... चल जायेगा। ये पचास छोटू को मेरी ओर से। ये आपका बेटा है न? कौन सी कक्षा में पढ़ता है?" सुमित ने पचास का नोट छोटू के हाथों में थमाते हुए पूछा।

सुमित का ये सवाल सुनकर छोटू ने 'ना' में सिर हिलाया। श्याम ने बताया कि घर-घर रद्दी सामान एकत्रित करने से लेकर उसके भंडारण तक छोटू रोज उनकी मदद करता है। उनकी इतनी हैसियत नही की उसका किसी अच्छे विद्यालय में दाखिला करा सके। इस रद्दी के कारोबार से चार पैसे उनके हाथ आते हैं जो लड़की के ब्याह वास्ते जोड़े जा रहे हैं। छोटू की माँ अक्सर बीमार रहती है और बड़ी मुश्किल से ही गृहकार्य कर पाती है; एक बड़ी बहन है जो घर-घर जाकर साफ सफाई का काम करती है; उसने भी तो एक आखर नही पढ़ा। श्याम के इन बातों ने सुमित के हृदय में वेदना भर दिये।

"तो किसी सरकारी स्कूल में आपने छोटू का दाखिला क्यों नही कराया? हमारी आज की शिक्षा नीति निःशुल्क और अनिवार्य है।" सुमित ने बड़ी अचरज भरी निगाहों से श्याम को देखते हुए पूछा।

"क्या बताऊँ बाबू? एक बार तो हांथ-पाँव मारे थे इसके लिये पर सरकारी गुरुजी बोलते हैं जन्म प्रमाण पत्र लाओ, ये लाओ, वो लाओ ..."

"तो फिर छोटू ने कभी नही कहा पढ़ाई के लिये?"

"शुरू से ही मेरे साथ हाथ बटाता है फिर इसके अंदर कोई ललक न उठी पढ़ाई की। अब बोलता है बड़ा होकर रद्दीवाला ही बनेगा।"

सुमित एकटक उसे निहारता रहा। हाय! ये कैसी विषम परिस्थिति है? सरकार जहाँ शिक्षा की अलख जगाने एड़ी-चोटी पर जोर दे रही है और दूसरी तरफ न जाने छोटू जैसे कितने मासूमों का बचपन अज्ञानता के तिमिर में धुंधलाता जा रहा है। जब तक कोई सार्थक प्रयास नही करेगा तब तक शिक्षा जन-जन के द्वार कैसे पहुँच पायेगा?

सुमित ने छोटू के सिर पर हाथ रखते हुए कहा कि वह उसे पढ़ाना चाहता है और इसके लिये श्याम उसे रोज उसके पास भेजे। अब तक बी.एड. की शिक्षा के दौरान उसने यही तो सीखा था ज्ञानदीप से हर जीवमात्र को प्रकाशित करना ही शिक्षक का परम कर्तव्य है। सकुचाता हुआ छोटू श्याम का हाथ पकड़कर जाने लगा।

#
दो दिनों बाद
संध्या का समय कॉलेज से आने के पश्चात सुमित आँगन में ही विचरण कर रहा था
"भैया... भैया..."

"अरे! छोटू...मुझे तो लगा था तुम नही आओगे?"

"भैया क्या पढ़ लिख कर कुछ भी बन सकते हैं?"

"हाँ छोटू... तुम अपने सारे सपने पूरे कर सकते हो।"

उसे अंदर बुलाते हुए सुमित ने अपने पास बिठाया। सारा इंतजाम वह पहले ही कर चुका था। बढ़िया सा नाश्ता परोसने के बाद उसके हाँथो लेखनी थमाते हुए माँ सरस्वती से बस यही विनय करने लगा जिस उद्देश्य से उसने छोटू को यहाँ बुलाया है वह शीघ ही पूर्ण हो। इस तरह छोटू रोज वहाँ आता और 2 से 3 घण्टे अध्ययन में बिताता। बीच - बीच में सुमित उसे दुनियादारी भी सीखाता। धीरे-धीरे सुमित के साथ 2-3 बच्चे और आने लगे उन्हे भी सुमित जी-जान से अभ्यास कराता और वे सभी उसके साथ काफी घुल - मिल गये। इस तरह इन 2 सालों में सुमित ने उन सभी को इस तरह से तैयार किया कि वे प्राथमिक समतुल्यता परीक्षा में बैठ सके और अपने आगे का अध्ययन नियमित रूप से विद्यालय में कर सके। कुछ पैसे भी उसने सभी बच्चों के दाखिले के लिये उनके परिवारजनों को दिए। अपनी बी.एड. की शिक्षा पूर्ण कर वो अपने घर बिलासपुर लौट आया।

#
"क्या हुआ भैया? आप कहाँ खो गये?"

"कुछ नही भाई। मै तुम्हारे छोटू से विवेक बनने के सफर के बारे में सोच रहा था। देखा, पढ़ लिखकर तुम आज क्या बन गये..." साहू जी ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा।

छोटू ने बताया कि साहू जी के पेंड्रा से जाने के बाद उन सभी बच्चों ने पास के ही सरकारी विद्यालय में दाखिला लिया और फिर नियमित पढ़ाई करते हुए अपना काम भी जारी रखा। आगे चलकर उसने कम्प्यूटर कोर्स किया फिर कड़ी मेहनत के बाद उसे ये नौकरी मिली। साहू जी सारा वृतांत सुनकर मन्द- मन्द मुस्कुराते रहे और गर्वित होकर छोटू को स्नेह भरी निगाहों से देखते रहे।
( समाप्त )


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