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ब्रजलाल

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स्वरचित हिन्दी कहानी प्रतियोगिता - Dec, 2022
Result   Details
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ब्रजलाल

Writer: H.P.Sarkar, Dhaleswar-13, Agartala, Tripura (W)

✿ एक शहर के कोने में एक मिठाई की दुकान थी। दो भाई, ब्रजलाल और केशवलाल मिलके वह दुकान चलाते थे। मिठाई की गुणवत्ता अच्छी थी। इसलिए दूर दूर से लोग मिठाई लेने आते थे।

एकबार एक जरुरी काम के लिए केशवलाल छह महिने के लिए दूर देश में चले गए। केशवलाल चले जाने के बाद की बात है।

एक दिन ब्रजलाल की दुकान में एक ग्राहक बोल रहे थे कि व्यवसाय में चारों तरफ मंदी का भीषण बुरा दौर आने वाला है। अब से व्यवसाय करना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा।

ब्रजलाल ने इस बात को मन में बिठा लिया। वह दिन भर सोचता था कि भीषण मंदी आनेवाली है, अब मेरा क्या होगा ? वह बहुत उदास हरने लगा। उसकी मुँह से हंसी ग़ायब हो गई।

अब उसकी दुकान में ग्राहक आना भी कम हो गाया। ब्रजलाल समझने लगा सही में अब मंदी का दौर चालू हो गया। वह और घबरा गया और उदास रहने लगा। ग्राहक और कम होने लगे। पहले उसकी दुकान में 50 सेर की मिठाई बनती थी। धीरे धीरे ऐसा हुआ कि अब 5 सेर की मिठाई ही बनती है फिर भी कुछ बच जाते हैं।

ऐसे में एक दिन केशवलाल लौट आया। दुकान और भाई की दशा देख उसे बहुत दु:ख हुआ। उसने ब्रजलाल से इसकी बज़ह पुछी तो ब्रजलाल ने सब सीधा सीधा और सच सच बोल दिया। केशबलाल समझदार था वह सब समझ लिया।

वह मुस्कराते हुए भाई से कहा “ हाँ, भैया तुम सच कह रहे हो। मंदी का दौर तो आया था , मगर वह पिछले महिने में ही चला गया। अब लोग चारों तरफ हर्ष और उल्लास के साथ नए नए व्यापार चालू कर रहें हैं। मंदी कबका खतम हो गया है। ”

ब्रजलाल को भाइ की बात पे यक़ीन था। उसने भी मान लिया कि सही में मंदी चली गई और मन ही मन बहुत ख़ुश हुआ। उसकी मुसकान लौट आया , मन मे नई आशा जागी और वह बहुत ख़ुश रहने लगा।

अब धीरे धीरे लोग आने लगे , ज्यादा मिठाई भी बिकने लगीं। कुछ ही दिनों में फिर से 50 सेर कि मिठाई बनने लगीं।

फिर एक दिन ब्रजलाल के मन में एक संका जगी। उसने अपने भाई से पूछा “ मंदी क्या फिर से आएगी? ”

केशवलाल हँसने लगा। उसने बोला “ मंदी कभी कुछ भी नहीं थी। तुम किसिकी बात सुनकर मन ही मन डर गए थे और मंदी को सच मान लिए। तुम उदास रहने लगे तो तुम्हारे काम में उसका असर पड़ा। विक्री कम होने लगी। फिर जैसे ही तुम सोचने लगे कि मंदी चली गई , तुम बहुत ख़ुश हुए , मन में एक आशा, एक उम्मीद जाग उठी। तुम मुस्कराने लगे और ख़ुश रहने लगे तो तुम्हारे काम में भी उसका असर हुआ। ” अब ब्रजलाल दिलसे हंसने लगे।
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