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संघर्षमय जीवन

Hindi Short Story

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स्वरचित हिन्दी कहानी प्रतियोगिता - Dec, 2022
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संघर्षमय जीवन
Writer: Divyanshi Triguna, Amroha, Uttar Pradesh


## संघर्षमय जीवन

Writer: Divyanshi Triguna, Amroha, Uttar Pradesh

मेरे पापा अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र और घर में सबसे छोटे सदस्य हैं। पापा पूरे घर में सब के प्यारे हैं। पापा का बचपन बहुत ही लाड-प्यार और ऐशो-आराम में रहा था। पापा की शुरुआती शिक्षा गाँव में ही पूरी हुई थी। फिर पापा दादाजी के साथ गांव से बाहर चले गए, जहां पर दादाजी की पोस्टिंग चल रही थी। जहाँ-जहाँ भी दादाजी की पोस्टिंग चलती रही, वहाँ-वहाँ पर ही पापा की पढ़ाई भी चलती रहती। वैसे खासतौर पर पापा की पढ़ाई सहारनपुर में हुई थी। पापा एक बहुत अच्छे विद्यार्थी, पुत्र, मित्र और भाई हैं। पापा से बड़ी दो बहने हैं, जिनकी शादी हो चुकी हैं। जब सबसे बड़ी बुआ की शादी हुई, तो उस समय पापा कुल पाँच वर्ष के थे। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह कितने छोटे होंगे। धीरे-धीरे समय बीतता चला गया, पापा की पढ़ाई भी आगे चलती चली गई। अब दादाजी के रिटायरमेंट का समय भी हो गया था पर, पापा की अभी कोई नौकरी नहीं लगी थी। इसलिए बेटे को कारोबार कराने व काम बङा करने की इच्छा रखते हुए, दादाजी ने रिटायरमेंट के पैसे से बिजनौर शहर में घर बनाया तथा एक ट्रक भी फाइनेंस कराया था। लेकिन ट्रक से घाटा आने के कारण दादाजी बीमार रहने लगे और बीमारी के चलते उनकी बहुत जल्द मृत्यु हो गई। दादाजी की मृत्यु होने के बाद, तो ऐसा हुआ मानो, पापा पर दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा हो। उधर ट्रक का एक्सीडेंट हो जाता हैं और ड्राइवर भी मर जाता हैं। इधर घर में कोई पैसे नहीं हैं, क्योंकि आधी पूंजी तो ट्रक लेने में और आधी शहर में घर बनाने में ही लग चुकी थी। कोई भी रिश्तेदार पापा की सहायता के लिए आगे नहीं आया। दोनों बहने और बहनोई तो ऐसे थे कि केवल अपना लालच पूरा होना चाहिए, बाकी दुनिया भाड़ में जाए। पापा अपनी दोनों बहनों और बहनोईयों से बहुत प्यार करते हैं, लेकिन उनकी बहन और बहनोई उन्हें केवल मतलब से ही प्यार करते थे। ऐसी कठिन परिस्थिति आ जाने पर भी, पापा के साथ कोई नहीं आया। जब किसी रिश्तेदार से कोई सहायता प्राप्त नहीं हुई, तो पापा ने कर्ज लिया और जैसे-तैसे उस परिस्थिति को संभाला। उस समय पापा मात्र 24 वर्ष के थे।

मेरे पापा ने हमेशा सब को प्यार दिया हैं, लेकिन लोगों ने सिर्फ उन्हें मतलब से इस्तेमाल किया हैं। मतलब सिद्ध होने तक, तो गुङ से भी ज्यादा मीठे और मतलब सिद्ध हो जाने के बाद नीम से भी ज्यादा कड़वे हो जाते हैं। खैर, फिर कुछ समय बाद पापा की शादी की बात चलने लगी और उस हादसे के पूरे दो साल बाद पापा की शादी हुई। खैर जैसे-तैसे करके यह शादी भी हो गई और शादी भी ऐसी हुई कि दोनों तरफ का खर्चा पापा को ही करना पड़ा। चाहे कितना भी बड़े से बड़ा आदमी हो पर, शादी जैसे खर्चे को वहन करने के बाद उस पर थोड़ा बहुत कर्ज तो हो ही जाता हैं। बस इन सब में एक यही बात अच्छी थी, कि मेरी मम्मी बहुत ही अच्छी, गुणी और पढ़ीलिखी महिला हैं। मम्मी ने पापा का जीवन के हर मोड़ पर बहुत साथ दिया। जब सारी दुनिया भी पापा के खिलाफ हो गई, तब भी मम्मी ने हमेशा पापा का साथ दिया। मेरी मम्मी अपने परिवार में सबसे बड़ी हैं और वह पहली लड़की भी जिसकी शादी इतने अच्छे और अमीर घर में हुई हैं। मम्मी से छोटी उनकी एक बहन और तीन छोटे भाई भी हैं। मम्मी के रिश्तेदारों ने बहुत कोशिश की, कि इस लड़की की शादी इतने अच्छे घर में ना हो पर, विधि के विधान को कौन बदल सकता हैं? और यह बात भी थी, कि पापा, मम्मी से शादी करने के निर्णय पर बिल्कुल अटल थे।

खैर ठीक-ठाक शादी हो गई। अब शादी के बाद भी कुछ परेशानियाँ तैयार थी। फिर पापा को काम की वजह से तीन-चार साल बाहर ही रहना पङा। पापा कभी-कभी घर आते, पर इस समय तो अपनी जान छुपाए ही रह रहे थे। क्योंकि जिन लोगों से पापा ने कर्ज लिया था, उन्होंने पापा के पीछे गुंडे छोड़ रखे थे, जिस कारण पापा को बाहर ही रहना पड़ता था। फिर शादी के एक साल बाद मेरा जन्म हुआ। पापा के बिना वह तीन-चार साल मम्मी के लिए बहुत ही कष्टदायक रहे। मम्मी हमें बताती हैं कि तेरे पैदा होने से पहले, सब मुझे तेरे पापा के खिलाफ भड़काते थे और उनसे तलाक लेने की बात करते थे, लेकिन मम्मी कभी उन सबके कहने में नहीं आई। खैर, मेरे जन्म के बाद मम्मी बस मेरे ही कामों में उलझी रहती और मुझे बहुत प्यार करती। फिर उसके बाद मेरा भाई हुआ और भाई के बाद एक छोटी बहन। मेरी छोटी बहन के पैदा होने के बाद, हम सब एक साथ रहने लगे।

पापा की भी कुछ परेशानियाँ कम हुई। फिर हम छः जन दादी, मम्मी-पापा और हम तीनों बच्चे उस शहर को छोड़कर, दूसरे शहर में आ गए। क्योंकि जो जगह हमें दुःख, परेशानी और मुसीबते दें, कभी-कभी उस जगह को छोड़ देना ही सही होता हैं और तब एक नई जगह से नई शुरुआत करना और भी अच्छा होता हैं। हम सब शहर में आ तो गए थे पर, पापा के पास अभी कोई काम नहीं था। फिर हम सब एक किराए के घर में रहने लगे। उसी शहर में हमारी बड़ी बुआ भी रहती थी। वह भी अपनी कठोर वाणी को लेकर हमारे घर आई और दादी से कहने लगी,"माँ इससे कह दिए कि ये यहाँ ना रहे, कभी इसके देनदार और कर्ज़दार हमारे घर भी आए।"

बुआ की ये बातें पापा को बहुत चुभी और पापा सोचने लगे कि मेरी बहन भी आज मेरे लिए क्या कह रही हैं। क्या मैं इतना बुरा भाई हूँ। खैर, यह सब बातें खत्म हुई और बुआ अपने घर चली गई। पापा ने फिर भी उसी शहर में रहते हुए, अपना लकड़ी बेचने का काम शुरू किया। अब हमारा भरण-पोषण तो ठीक-ठाक चल ही रहा था पर, जैसे-जैसे हम बड़े हो रहे थे, परेशानियाँ भी थोडी बढने लगी थी। क्योंकि अब मैं और मेरा छोटा भाई स्कूल जाने के लायक हो गए थे और हमारी पढ़ाई-लिखाई भी जरूरी थी।

इसी बिच दादी का देहांत हो गई। दादी की अर्थी अभी उठी भी नहीं थी कि यह सब बातें होने लगी कि उस घर में हमारा कितना हिस्सा हैं, जो पिताजी ने बिजनौर में बनाया हैं। इससे शर्मनाक और क्या बात हो सकती हैं? पापा ने दादी का दाह संस्कार किया और बाकी के सारे काम पूरे किए। उस समय पापा बहुत ही तंगी से गुजर रहे थे। दादीजी ही एकमात्र पापा का सहारा थी, लेकिन वह भी अब चली गई थी। किराए के घर में रहते हुए भी पापा ने हमें वह सब खुशियाँ दी, जो अपने घर में होती हैं। दादीजी के जाने के बाद पापा ने भारतीय जीवन बीमा निगम में काम करना शुरू किया। वहाँ पर भी शुरुआत में तो पापा को काफी कठिनाई हई, पर धीरे-धीरे पापा उस क्षेत्र में अपना बेहतर प्रदर्शन देने लगे। लेकिन वह काम भी अब मंद सा पङने लगा, क्योंकि इसमें भी पैसे लगाने के बाद ही कहीं कुछ मुनाफा होता हैं। लेकिन पहले से फिर भी अब हमारा जीवन काफी अच्छा था। पापा की एक बात मुझे सबसे ज्यादा अच्छी लगती हैं कि वो किसी परिस्थिति में कभी हार नहीं मानते। आखिरी साँस तक उस चीज से लड़ते हैं। हमें हिम्मत देते हैं और खुद अपना होसला हमेशा बनाए रखते हैं। जीवन सच में इतना आसान नहीं होता, जितना वह लगता हैं। हमें जीवन को जीने के लिए पूरी जिन्दगी से लड़ना पड़ता हैं। सच कहे, तो इस संसार में हमारा कोई सगा रिश्तेदार नहीं हैं, क्योंकि मम्मी की शादी पापा से होने के बाद, मम्मी के सारे रिश्तेदार उनसे पूरी तरह से विमुख हो गए हैं और यहाँ तक कि उनके माता-पिता भी और पापा के तो सारे रिश्तेदारो ने उन्हें इतना धोखा दिया है कि अब हम ही उन सब को अपनी जिंदगी में नहीं रखना। चाहते। क्योंकि अब यह डर है कि वह आगे भी हमें धोखा दे सकते हैं। इसलिए ऐसे दगाबाज रिश्तेदारों से तो अच्छा हैं कि इंसान अकेले ही अपना जीवन यापन कर ले, कम से कम यह तो नहीं रहेगा कि मुझे किसी ने धोखा दिया हैं। हम तीनों भाई-बहनों ने तो, बचपन से लेकर अब तक केवल अपने माता-पिता को ही जाना हैं और उन्हें ही अपना भगवान माना हैं। हम तीनों अपने माता-पिता से बहुत प्यार करते हैं और हमारे माता-पिता हम तीनों से। जब से मैंने होश संभाला है, अपने पापा के संघर्ष को जाना है, तब से मेरा जीवन बिलकुल बदल गया है। जीवन का संपूर्ण अर्थ ही बदल गया हैं। मेरे पापा ने अपने जीवन में बहुत दुःख, परेशानियों का सामना किया है। उन्होंने बहुत अपमान, बहुत जलालत सही है, पर फिर भी जीवन के इस कठिन दौर में उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अपनी अच्छाई नहीं छोड़ी और हमेशा सच्चाई के रास्ते पर चलते रहे और यह विश्वास रखा कि सब अच्छा होगा। इस संघर्षमय जीवन में दृढ़ रहने की शक्ति मेरी मम्मी ने दी हैं। चाहे पापा के साथ कितने भी दुःख और परेशानी क्यों ना रही हो पर मम्मी ने कभी पापा का साथ नहीं छोड़ा। सारी दुनिया पापा के खिलाफ हो गई पर मम्मी हमेशा पापा के ही पक्ष में रही। क्योंकि मम्मी भी जानती थी कि उनके पति बहुत अच्छे हैं, वह तो बस भलाई के मारे हुए हैं। क्योंकि सच्चाई के रास्ते पर इंसान को अकेले ही चलना पड़ता है और जिंदगी के सफर को भी इंसान को अकेले ही तय करना होता है पर जब कोई सच्चा हमसफ़र हमारे साथ होता है तो "जीवन की मुश्किलें कम तो नहीं, पर जिंदगी की राहें आसान जरूर हो जाती हैं" और हमारे माता-पिता एक दूसरे के सच्चे हमसफर, सच्चे साथी हैं। हमारा इस दुनिया में अपना कोई नहीं है। ना मामा, ना मौसी, ना चाचा, ना बुआ, ना नाना, ना नानी और दादा-दादी बहुत अच्छे थे, पर वह दुनिया से बहुत जल्दी ही चले गए और बाकी रिश्तेदार है तो पर उनका होना ना होने जैसा ही है। इसलिए हम पाँच जन हमारे माता-पिता, हम दो बहनें और एक भाई हैं जो बस एक दूसरे के लिए हैं। हंसी हो, खुशी हो, दुःख हो, परेशानी हो लेकिन हर स्थिति में हम पाँचो एक-दूसरे के साथ हैं। सी बीच पापा ने एक सच्ची दोस्ती की मिसाल भी कायम की। पापा ने अपने बिजनौर वाले मकान की गारंटी पर अपने एक जाट दोस्त को अठारह लाख रूपये दे दिए। ऐसी दोस्ती की कीमत शायद ही कोई अदा कर पाएगा। क्योंकि पापा के इस दोस्त ने पापा की दोस्ती का क्या सिला दिया, इसका वर्णन हम आगे करेंगे। इन सबके बाद, मेरा शहर के सरकारी स्कूल में छठी कक्षा में एडमिशन हुआ। हमारे दिन अभी भी वैसे ही चल रहे थे, लेकिन इस कठिन दौर में भी पापा ने हमारी पढाई पूरी तरह से जारी रखी। क्योंकि उन्हें ईश्वर पर पूरा विश्वास था कि वह सब अच्छा करेंगे। साल पर साल बीतते गए और मेरे पापा का परेशानियों से लडना जारी रहा। अब हम तीनों बड़े हो चुके हैं। पापा ने जिस दोस्त की सहायता उस समय की थी, उन्हें पैसे दिए हुए, अब पूरे पाँच साल बीत चुके थे, लेकिन अभी तक कोई वापसी नहीं हैं और अब हालात यँ हैं कि उस दोस्त ने पापा का फोन भी उठाना बंद कर दिया हैं। " वाह री दुनिया तेरा कैसा दस्तूर हैं, जो मदद करना भी, आज एक गुनाह हो गया हैं। " आज जब कोरोना महामारी अपनी चरम सीमा पर हैं और सब जगह तालाबंदी और हाहाकार मच रहा हैं, तब भी उस दोस्त ने पापा की कोई सहायता नहीं की। वो तो जरा भगवान की दया रही, जो हमारे परिवार का कोई भी सदस्य इस महामारी की चपेट में नहीं आया। फिर भी यह लॉकडाउन का दौर हमारे लिए बहुत ही कठिन रहा। लेकिन इस दौर में भी पापा के लिए हमारा प्रेम थोड़ा भी कम नहीं हुआ। मेरे पापा ने सभी के साथ हमेशा अच्छा किया हैं, लेकिन उन्हें कहीं पर भी, कुछ भी अच्छा नहीं मिला हैं। पापा के माता-पिता अच्छे थे, तो वह अब दुनिया में नहीं रहे। दो बहने हैं, तो वह बस अपने लालच तक ही सीमित हैं और अब तो हालात यूँ है, कि बहनें भी एक भाई की जान की दुश्मन हो गई हैं। ससुराल मिली तो, वह भी अच्छी नहीं, क्योंकि हमारे नाना बहुत शराब पीते हैं और पूरी तरह से एक अधर्मी व्यक्ति बन गए हैं। तीनों मामा और मौसी भी, उनके रंग में रंगे हुए हैं। आज हालात यूँ हैं, कि मम्मी को अपने मायके गए हुए भी ग्यारह साल हो चुके हैं। वह भी केवल एक बात के कारण, कि हमारे नाना ने पापा और दादी का बहुत अपमान किया था और इसी कारण फिर मम्मी कभी अपने घर नहीं गई। क्योंकि मम्मी तो बस एक बात कहती हैं, कि जब सब अपने बुरे से बुरे दामाद का भी सम्मान करते हैं, तो तुमने अपने देवता जैसे दामाद का अपमान क्यों किया? __ और देखा जाए तो, मम्मी का यह सब कहना सही हैं। एक पत्नी का यही सच्चा धर्म होता हैं, कि जहाँ उसके पति का सम्मान नहीं, वहाँ उसे कभी नहीं जाना चाहिए। जो कुछ नाम के रिशतेदार हैं , वह भी सब अपने मतलब तक ही सीमित हैं। अगर उनका काम हैं, तो उन्हें हमारा नंबर भी मिल जाएगा, हमारा घर भी मिल जाएगा और काम निकल जाने के बाद कौन रिशतेदार, कैसा रिश्तेदार। वैसे इस दौर की, यह कड़वी सच्चाई हैं, कि "खून के रिश्ते इस दौर में काम नहीं आएगा, कोई गैर होगा तुम्हारा अपना, तो वह कहीं शायद तुम्हारा साथ दे जाएगा"। अब हमारे पाँच जनों का परिवार ही सबसे प्यारा हैं। हम सब एक साथ प्यार से रहते हैं। सब तरह से हमने अब सब्र कर लिया हैं। पापा कहते हैं," मुझे इस बात का कोई दुख नहीं, कि मुझे कहीं कुछ अच्छा नहीं मिला, बल्कि मुझे इस बात की खुशी हैं, कि हीरा, मोती, लाल जैसे मेरे बच्चे हैं और एक सच्ची पतिव्रता पत्नी। मैंने तो अब बस इतने में ही सब्र कर लिया हैं। यही मेरे जीवन का सर्वोपरि धन हैं "। पापा हम बच्चों से बहुत प्यार करते हैं। पापा सबसे ज्यादा हमसे बातें करना और हमारे साथ समय बिताना पसंद करते हैं। पापा हम बच्चों को हर बात के लिए समझाते हैं और हमारे दोस्त बन कर हमसे बात करते हैं। कभी-कभी हमें जीवन की सच्चाई के विषय में भी बहुत कुछ बताते हैं। पापा कहते हैं,"बच्चों, इस दुनिया में कोई किसी का नहीं हैं। तुम जो खुद के लिए हो सकते हो, वह कभी कोई दूसरा नहीं हो सकता। तुम बच्चों से मैं बस एक ही चीज चाहता हूँ कि तुम अच्छे से पढ़ी-लिखो और बेहतरीन मुकाम को प्राप्त करो, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि जैसी परेशानियाँ, मैंने झेली हैं, ऐसी परेशानियों का सामना कभी भी तुम्हें करना पड़े। क्योंकि आज के युग में केवल दो व्यक्ति सफल हैं- पहला, जिसके पास अच्छी योग्यता हैं और दूसरा, जिसके पास बहुत पैसे हैं। बच्चों, तुम्हें पढ़ाने के लिए, मैं खुद को भी बेच सकता हूँ, लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम अपनी काबिलियत के दम पर अपना मुकाम हासिल करो और मुझे ये वचन दो, कि तुम तीनों हमेशा एक रहोगे और एक-दूसरे के काम आओगे"। हम तीनों ने इस बात के लिए पापा को वचन दिया। अब हालात पहले से बेहतर हैं और अब इन हालातों को सुधारने का बीड़ा केवल पापा का नहीं, हम तीनों का भी हो गया हैं। इसलिए अब हम दिल लगाकर पढ़ाई कर रहे हैं __और हमें अपनी मेहनत पर पूरा विश्वास हैं। हम अपने माता पिता को दुनिया का हर सुख, हर ऐशो-आराम देंगे। अपने माता-पिता को हर वो खुशी देंगे, जिससे वह किसी कारणवश वंचित रह गए हैं। अब तो बस हमारी यही इच्छा है कि हमने अपने माता-पिता को बहुत संघर्ष करते देखा है इसलिए हम तीनों बहन-भाई बहुत अच्छे से पढ़ लिखकर अच्छे अफसर बने और अपने माता-पिता को दुनिया का हर सुख दे सके। जिस सच्चे अनुभव को मैंने आपके साथ आज साझा किया है, वह अनुभव बहुत गहरा है। क्योंकि ऐसा जीवन जीना बहुत कठिन होता है, जिस जीवन में भगवान के अलावा कोई दूसरा सहारा ना हो। जब व्यक्ति के साथ उसके अपने खड़े होते हैं तो वह कितनी ही कठिन-से-कठिन परिस्थिति का सामना कर जाता है और शत-प्रतिशत उस परिस्थिति से निकल जाता है। यहां तक कि वह भगवान से भी लड़ जाता है, लेकिन जब कोई अपना नहीं होता तो सारी दुनिया ही गैर हो जाती है। अब पापा ने उन सभी दुख भरी यादों को भूलकर, जीवन की एक नई शुरुआत की हैं और अपने आपसे यह वादा भी किया हैं, कि जीवन में अब कभी हार नहीं माननी हैं, चाहे परिस्थिति कितनी भी विकट क्यों ना हो जाए। मुझे इस जीवन से लड़कर अपनी जिंदगी जितनी हैं और ऐसा जीवन जीना हैं, जिसमें मुझे इतिहास रचना हैं। सबके लिए जीवन का अर्थ भिन्न-भिन्न हैं। जीवन को लेकर सबका नजरिया भी अलग है, लेकिन फिर भी मैं अपने अनुभव से यही कहना चाहती हूँ कि " जीवन वही धन्य है, जिसमें अपने हैं, जिसमें सपने हैं, जिसमें बाहर है, जिसमें परिवार है, जिसमें मन की शांति है, जिसमें ना कोई ईर्ष्या प्रवृत्ति है, जिसमें एकता है, जिसमें समरसता है, जिसमें ना कोई द्वेष है, जिसमें ना कोई क्लेश हैं, जिसमें हर्ष है, जिसमें संघर्ष है, जिसमें मान है, जिसमें सम्मान है, जिसमें प्रेम है, जिसमें भगवान हैं।" " जन्म जीवन है और जीना जिंदगी जन्म से जीवन मिले, जीने से जिंदगी खुशी राज है इस जीवन का, तो जी ले जिंदगी, तो जी ले जिंदगी।"
( End)


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