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दोस्ती

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स्वरचित हिन्दी कहानी प्रतियोगिता - Dec, 2022
Result   Details
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दोस्ती

Writer: H.P.Sarkar, Dhaleswar-13, Agartala, Tripura (W)

✿ यह बात मैं ने मेरे एक डॉक्टर दोस्त से सुनी है। यह उसकी ही कहानी है। नाम सुप्रतिम है। उसका पिताजी भी डॉक्टर है। वे लोग अमीर है । इसलिए सुप्रतिम को कभी गरीबी का सामना नहीं करना पड़ा था। उसे मालूम नहीं था गरीबी क्या होता है। एक अमीर का बेटा एक अमीर जैसा ही बड़ा हुआ है। लेकिन वह मन से अमीर हुआ इस घटना के बाद।

उन दिनों वह पाँचवी या छठी कक्षा में पढ़ता था। ग़ैर सरकारी स्कूल था तो खर्चा भी ज्यादा था। इसलिए उसके लगभग सारे सहपाठी अमीर ही थे। सिर्फ़ एक को छोड़ के। उसका नाम था देवेश। देवेश के पिताजी उस ही स्कूल के सामने बादाम आदि बेचते थे। उनकी यह इच्छा थी कि देवेश पढ़ाई करके एक बड़ा आदमी बने।

मगर हुआ विपरीत। टायफायड से देवेश की आँखों की रोशनी चली गई। वह अब न तो कुछ पढ़ सकता है और न कुछ लिख सकता है। कुछ ही दिनों में उसे वही स्कूल के सामने अपने पिताजी के साथ बादाम बेचते देखा गया। उसके वहीं दोस्त उससे बादाम खरीदते थे। और उनमें सुप्रतिम भी शामिल था।

सुप्रतिम अपने दोस्त का अंधापन का फायदा उठाके उससे हर दिन बादाम चोरी करता था। एक रुपया का बादाम बोलके पाँच रुपये का बादाम ले जाता था। देवेश को कुछ मालूम नहीं चलता था , लेकिन वह अपने दोस्त पर बहुत भरोसा करथा था। कुछ ही दिनों में देवेश की दुकान भी बंद हो गई। कोई उसे फिर नहीं देखा। इस बीच सुप्रतिम के पिताजी का भी दूर शहर में तबादला हो गया। और वे लोग वहाँ से चले गए। बात यहाँ पे आके रुक गई , मगर खतम नहीं हुई , शुरु हुई दूसरी ओर से।

सुप्रतिम डॉक्टर बनने के बाद उसे नौकरी मिली और उसे उसी शहर में वापस आना पड़ा। अपनी गाड़ी से वह हर दिन उसी स्कूल के सामने से दवाख़ाना जाता था और उसी रास्ते से लौट भी आता था। लोग उसे डॉक्टरबाबु , डॉक्टरबाबु कहते हैं , बहुत सम्मान करते हैं।

एक दिन वह दवाख़ाना से लौट राहा था कि अचानक वहीं स्कूल के सामने उसे अपना दोस्त दिखाइ दिया। देवेश को पहचानने में उसे देर नहीं लगी। उसने गाड़ी को वहीं रुका दिया। देवेस आज बिलकुल अंधा है। कंकाल सा बदन पे एक फटा-पुराना कपड़ा , रूखे सूखे बाल , हाथ में एक दुतारा। ज़मीन में बैठके वह सुर-बेसुर में गाना गा रहा है। सामने एक कटोरी में कोई कुछ पैसा फेंक जाता है तो कोई मुड़के भी नहीं देखता।

देवेश का वह गाना सीधा सुप्रतिम के सिने में आके लगा। लोग उस गाने का मतलब समझे या न समझे सुप्रतिम को उस गाने का अर्थ और दर्द दोनों समझ में आ गया। उसकी आँखों के सामने वो हरकतें दिखाई देने लगी जो उसेन देवेश के साथ किया था। न जाने कितने ही दिन उसने अपने इस असहाय दोस्त को धोखा देकर लूटा था।

सुप्रतिम की आँखों से पानी बहने लगा , वह और देर तक गाड़ी में बैठ न पाया , धीरे से उतारके वह अपने दोस्त के पास आया और देवेश के हाथों को पकड़ा। देवेश अचानक घबड़ा गया। लेकिन जैसे ही उसने उन हातों को छूआ वह और ज्यादा चौंक गया। उसके चेहरे पे एक ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी और दिल की गहराई से एक आबाज़ निकली “ सुप्रतिम ! मेरे दोस्त ! ” देवेश और ज़ोर से सुप्रतिम के हाथों को पकड़ लिया। सुप्रतिम की आँखों से बारिश की तरहा आँसू बहने लगे। बह बहुत कोशिश के बाद बोला “ पहचाना मुझे ? ” और कुछ बोल ही न पाया। देवेश मुस्कराके बोला “ हाँ , कैसे न पहचानता। तू तो मेरा दोस्त है, मेरा भाई है। कितने दिनों के बाद मिले हैं हम दनों। कैसा है तू ? ” सुप्रतिम कुछ बोल ही न पाया। वैसे ही देवेश के हाथों को पकड़के देर तक बैठा रहा। फिर धीरे से बोला “ चल मेरे साथ। ”

सुप्रतिम देवेश का हात पकड़के अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ने लगा। न देवेश की कोई बात उसे सुनाई दी न उसने देवेश का हाथ छोड़ा। गाड़ी सीधा सुप्रतिम के घर के सामने रुकी। घर में जो कुछ भी खाने के लिए था देवेश को दिया। बाद में इतने सारे रुपये देवेश के हाथों में थमाके उसे घर छोड़के आया। अगली सुबह देवेश को लेके सीधा हॉसपिटल। कुछ ही दिनों में उसकी आँखों का ऑपरेशन भी हुआ और आँखों की रोशनी लौट आई। आँखें बिलकुल ठीक तो नहीं हुईं , पर चलने-फिरने में कोई तकलीफ न रही।

कुछ दिन बाद सुप्रतिम अपने ही घर में गरीबों के लिए एक दवाख़ाना चालू किया। कॉलेज की एक सहपाठी , डॉक्टर गीतश्री से शादी की। दोनों मिलके दबाख़ाने में काम करते हैं और देवेश उस दवाख़ाने का बड़बाबू। दवा के लिए पहले उससे ही टिकट लेना पड़ता है।

बाद में सब ने मिलके देवेश की शादी कराई। आज देवेश की लड़की और सुप्रतिम की लड़की साथ-साथ वहीं स्कूल जाती हैं जहाँ ये दोनों कभी जाते थे। लेकिन खर्चे को लेकर दोनों में झगड़ा ज़रुर होता है। क्योंकि सुप्रतिम देवेश की कोई बात सुनता ही नहीं।
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