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औपचारिक रिश्ता - Part 3

Hindi Short Story

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स्वरचित हिन्दी कहानी प्रतियोगिता - Dec, 2022
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औपचारिक रिश्ता - Part 3
लेखिका- सुरभि सिंह, सेक्टर एच, एल डी ए कालोनी, लखनऊ


Other Parts of this story: Part 1     Part 2     Part 3     Part 4    

# औपचारिक रिश्ता - Part 3
"अरे माँ, मैं आपकी बहू का क्या खयाल रखूँगा, बल्कि वो ख़ुद मेरा ख्याल रखती है।" महेंद्र की बात सुनते ही गौरी ने अपनी झुकी हुई पलकें उठाईं। महेंद्र की नज़रें उसी को निहार रही थीं। एक पल के लिये उसने महेंद्र की गहरी आँखों में झाँका। उसे उन आँखों में कुछ जज़्बात नज़र आये थे। लेकिन अगले ही पल, उसने झप से अपनी पलकें झुका ली। अब वो कोई और भ्रम नहीं पालना चाहती थी। वैसे भी इससे पहले भी उसने कई बार महेंद्र की आँखों में कुछ ऐसे ही जज़्बात देखे थे, जिन्हें उसने प्यार समझने की गलती की थी। अब वह अपनी गलतियां नहीं दोहराना चाहती थी।

"नहीं माँ यहीं हैं। गौरी माँ बुला रही हैं," महेंद्र के कहने पर अपने सिर का दुपट्टा ठीक करते हुए वह उसके बग़ल में आ गई। महेंद्र की माँ, सरला जी अपने बहू बेटे को एकसाथ देखना चाहती थी।

"और बेटा गौरी, खाना पानी हो गया?" अपनी बहू को देखते ही उन्होंने पूछा।

"जी मम्मी। आप ने और पापा ने खाना खा लिया?"

"हाँ, दरअसल तुम दोनों से कुछ ख़ास काम था।"

"जी मम्मी बोलिये..."

"अरे वो दरअसल, तुम लोग तो जानते ही हो कि तुम दोनों की शादी किन परिस्थितियों में हुई थी। तुम दोनों के बारे में बड़ी चिंता लगी रहती थी। वही मैंने भोलेनाथ से मन्नत माँगी थी। उनकी कृपा से जब आज सब ठीक हो गया है तो कल शिवरात्रि पर तुम दोनों मन्दिर जाकर भोलेबाबा के दर्शन कर आओ।"

"माँ वो...," गौरी कुछ बोलने ही जा रही थी कि महेंद्र उसकी बात काटकर बोला, "ठीक है माँ, हम लोग कल सुबह मन्दिर चले जाएंगे।"

महेन्द्र की बात सुनकर गौरी ताज्जुब से उसका मुंह ताकने लगी। मन्दिर जाकर वो क्या करेगी? क्या सरला-माँ की तरह वो भगवान के सामने भी ख़ुश होने का झूठा दिखावा करेगी? आख़िर वह उन्हें किस बात का धन्यवाद कहेगी? इस झूठी मुस्कान का, या झूठी शादी का? अरे शादी का झूठ तो सरला-माँ भी अक्सर पकड़ लेती थीं। उनके बेटे और बहू के रिश्ते सही नहीं है, शादी के कुछ ही दिन बाद वो जान गई थीं। वो आये दिन ग़ौरी को तरह-तरह तरकीबें सुझाया करती थीं ताकि उनका रिश्ता सुलझ जाए। एक दो वाज़िब तरकीबें ग़ौरी ने आजमायी भी थी। अपने स्वाभिमान को साख पर रखकर उसने ख़ुद महेंद्र से बात करने शुरु की थी। कोशिश करती थी कि वो महेंद्र को अच्छी लगे। थोड़ा बहुत इंग्लिश बोलना भी सीखने लगी थी, ताकि वो अपनी दीदी की तरह महेंद्र से इंग्लिश में बात कर सके। पर इन सबका कोई फ़ायदा नहीं हुआ। उसकी सभी कोशिशें ना-कामयाब रहीं। आज भी महेंद्र की जिंदगी में उसकी हैसियत एक नाममात्र की बीवी के अलावा और कुछ नहीं है। जिसके साथ वह सिर्फ पति होने की औपचारिकताएं निभाता आ रहा है।

आराध्या के पैदा होने से माँ को लगता है कि उनके बहू-बेटे का रिश्ता सुधर गया। हैंह... अब उन्हें कौन बताये कि आराध्या का जन्म, सिर्फ़ उस रात की जिस्मानी जरूरतों का नतीजा है। जिसे गौरी तो अपने जीवन का सबसे खूबसूरत क्षण मानती है। पर अफ़सोस, महेंद्र ऐसा नहीं सोचता। उसे तो वो रात सिर्फ़ एक ग़लती नज़र आती है। हालांकि उसने ऐसा कभी कहा नहीं, लेकिन उसने वो ग़लती दुबारा दोहराई भी तो नहीं। इतनी एहतियात बरतने लगा कि एक दो बातों का सिलसिला, जो उनके बीच शुरू हुआ था वो भी ख़तम कर दिया। नज़र उठाकर देखना तक छोड़ दिया। अब इसे ग़लती का डर ही कहा जायेगा। बल्कि जिस तरह उसने रुख अपनाया था, उसे देखकर तो ऐसा लग रहा था मानो कोई गुनाह कर दिया हो उसने।

उस रात की अगली सुबह उसकी आँख देर से खुली थी, वह उठकर देखी तो महेंद्र समान पैक कर रहा था। उसने पूछा तो बोला जॉब पर जा रहा हूँ। वह हैरान सी खड़ी उसका मुँह ताक रही थी। महेंद्र की मुंबई में नई जॉब लगी थी। माँ-पापा के कहने पर ही सही, पर वह गौरी को भी साथ ले जाने वाला था। लेकिन उस रोज़ वो एक बार भी उससे साथ चलने को नहीं कहा। बस समान पैक किया और माँ-पापा का आशीर्वाद लिया। जब उन्होंने अचानक से रवानगी की वजह पूछी तो उसने बहाने बना दिये थे। दिल्ली में उसे माँ-पापा के पास छोड़कर वह मुंबई अकेले चला आया था। आते वक़्त उसने एक बार भी ग़ौरी को पलटकर नहीं देखा। वह उसी दिन समझ गई थी कि जिस मिलन को वो अपनी शादी की नई शुरुआत मान रही है, वो महेंद्र की नज़र में ग़लती के अलावा और कुछ नहीं है। जिसपर वह आजतक पछता रहा होगा। भला फिर वो मन्दिर जाने को क्यों तैयार हो गया?

"गौरी...गौरी ," वह पिछली यादों में इस क़दर खोई थी कि उसे ये भी सुध ना रही कि महेंद्र उसे कबसे आवाज़ें दे रहा है।

"गौरी कहाँ खो गई।" इस बार महेंद्र ने जब उसके गालों पर हाथ रखकर पुकारा, तब जाकर उसे होश आया। महेंद्र के छुते ही उसे झटका सा लगा और वह चेत गई। दो क़दम पीछे हट गई।

"क्या हुआ? तुम ऐसे क्यों डर गई?" महेंद्र हल्का सा हँसा था। उसे हँसता देख ग़ौरी और हैरान हो गई। वह बस अपना सिर 'ना' में हिला दी और कुछ ना बोल सकी।

"मैं कह रहा था कल शिव पूजा के लिए क्या-क्या तैयारी करनी है बता दो। सुबह जल्दी निकलना होगा ना?" कहते हुए वह टेबल की तरफ़ बढ़ा। चार्जर से लैपटॉप निकाला, फिर बेड पर बैठ गया। वह हर रोज़ यही करता था। खाने के बाद लेपटॉप लेकर बैठ जाता था, और तब तक खोले रहता था जब तक उसे नींद आ जाये। ये लेपटॉप तो उसका सबसे अच्छा बहाना था, ग़ौरी से दूर रहने के लिए। और आज भी वह अपने लेपटॉप रूपी हथियार के साथ तैयार था, ताकि एक और रात ऐसे गुज़र जाए जिसमें उसे उसका सामना ना करना पड़े।

गौरी मन ही मन हँसी फिर सिर झिटककर बालकनी की ओर बढ़ चली।

"अरे कहाँ चली। बताया नहीं तुमने?" महेंद्र ने उसे पीछे से आवाज़ दी थी। वह रुकी और बिना मुड़े ही पूछी, " क्या बताना है?"

"पूजा की तैयारी और क्या। जाना नहीं है कल?" वह अभी भी लेपटॉप स्क्रीन पर अपनी नज़रें धँसाये था।

"कहाँ जाना है?" गौरी ने सवाल किया, तब महेंद्र ने नज़रें उठाकर उसकी ओर देखा। वह मुँह फेरे खड़ी थी। ना जाने क्यों, आज उसके लहज़े में नाराज़गी नज़र आ थी। वह लेपटॉप एक किनारे रखकर उसके पास आ गया। बोला, "कहाँ जाना है का क्या मतलब! अभी तो बताया कल मन्दिर जाना है, शिव पूजा के लिए।"

"मुझे नहीं जाना है मन्दिर। और ना ही मुझे कोई पूजा करनी है।"

"क्यों, क्या हुआ?" उसका जवाब सुनकर महेंद्र की त्यौरियां चढ़ गईं।

"मुझे नहीं जाना बस?" वह बेरुखी से कहकर झनझनाते हुए बाथरूम में घुस गई। महेंद्र हैरान खड़ा उसे देखता रहा। आज पहली बार उसने इस तरह बात की थी। वह कुछ देर खड़ा उसका इंतजार करता रहा। लेकिन जब वह बाहर नहीं निकली, तो फिर लेपटॉप लेकर बैठ गया।

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"अरे यार, ग़ौरी के तो भाग्य फूट गए। उसकी बहन भाग गई और बेचारी को अपने जीजा से शादी करनी पड़ गई।"

"की ना, उसने बहुत कोशिश की। बहुत मना किया, ख़ूब रोई । लेकिन उसकी माँ ने नहीं सुनी। जबरदस्ती शादी करा दी।"

"हाँ यार, मुझे तो तरस आता है बेचारी पर। पता है वो लड़का उससे सात साल बड़ा है। उसकी दीदी भी उससे पाँच साल बड़ी थीं ना।"

"सच कहूँ तो बहुत बड़ा अन्याय हुआ उसके साथ। मुझे तो लगता है, इसका जीजा भी ठरकी है। सुंदर लड़की देखी नहीं, कि नज़र फ़िसल गई।"

अंदर विदाई की तैयारी चल रही थी और बाहर महेंद्र चुपचाप बैठा था। रात के सदमें से वो अभी भी उभरा नहीं था, कि अनजाने में सुनी हुई बातों ने उसे नया झटका दिया था। एक लड़की फ़ोन पर किसी से बातें कर रही थी। बातों से ही लग रहा था कि वह गौरी की सहेली थी, जो उसकी क़िस्मत पर रो रही थी। उसकी बातें सुनकर महेंद्र को एहसास हुआ कि बदकिस्मती के तूफ़ान में सिर्फ उसकी ही जिंदगी नहीं पलटी थी, बल्कि ग़ौरी भी उसी नाव पर सवार थी। उमा ने उसका विश्वास इस कदर तोड़ा था कि उसके सभी जज़्बात बिखर गए थे। ग़ौरी को देने के लिए उसके पास कुछ नहीं था। लेकिन वो इस रिश्ते में ग़ौरी को सम्मान दे सकता था। औऱ यही किया उसने। हमेशा ये कोशिश की कि किसी भी वजह से ग़ौरी का सम्मान आहत ना हो। ग़ौरी अच्छी लड़की है। उम्र में छोटी है पर समझदार ज़्यादा। अपनी बहन की तरह ही वह भी खूबसूरत थी। तेईस साल की उम्र में उसकी जवानी खूबसूरती के शिखर चूम रही थी। वह कई बार खुद को उसकी ओर खिंचता हुआ महसूस करता था, लेकिन अगले ही पल ख़ुद को संभाल लेता था। भले ही वो मजबूरी में, दिखावे के लिए ये रिश्ता निभा रही थी, पर वो तो सच जानता था कि ये शादी उसकी मर्ज़ी के खिलाफ है। अब इन हालतों में भला वो अपना हक़ जताकर उसे अपमानित कैसे कर सकता था? सो उसने हमेशा इस बात का खयाल रखा। जो कभी उसे जी भर निहारने का दिल किया, तो नज़रें फेर ली। वो उसे असहज महसूस नहीं कराना चाहता था। वैसे भी उसने गौर किया था, वह उसके आस पास आते ही असहज सी हो जाती थी। क्यों ना हो, वो उम्र में उससे कितना बड़ा था। लेकिन गुज़रते वक़्त के साथ असहजता कम होने लगी। धीरे-धीरे वह उसके साथ घुलमिल रही थी। महेन्द्र को भी अच्छा लगता था उसके आस पास रहना। पर मन में डर भी रहता था कि कहीं वह अपनी सीमाएं भूल ना जाये, जिसका नतीजा उनके रिश्ते को और बिगाड़ दे।
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