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औपचारिक रिश्ता - Part 4

Hindi Short Story

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स्वरचित हिन्दी कहानी प्रतियोगिता - Dec, 2022
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औपचारिक रिश्ता - Part 4
लेखिका- सुरभि सिंह, सेक्टर एच, एल डी ए कालोनी, लखनऊ


Other Parts of this story: Part 1     Part 2     Part 3     Part 4    

# औपचारिक रिश्ता - Part 4
फिर एक दिन वही हुआ, उसका डर हकीकत में बदल गया। उस रोज़ माँ के ज़ोर देने पर वह उसके साथ पिक्चर देखने चला गया। दोनों पिक्चर देखकर घर लौटने लगे, तो रास्ते में जोरों की बारिश होने लगी। घर आते-आते वे दोनों भीग गए थे। उसकी शिफॉन की साड़ी भीगने की वजह से उसके बदन पर चिपक गई थी। लाल साड़ी में वो काफ़ी खूबसूरत लग रही थी और लुभावनी भी। उस दिन वह ख़ुद को रोक ना सका, और उसकी खूबसूरती में अपनी सीमाएं भूल गया। निश्चय ही वह उसके लिए बेहद खूबसूरत रात थी। सुबह जब आँख खोली तो ग़ौरी उसकी बाहों में सिमटी हुई थी। उसका मासूम चेहरा देखकर वह मुस्कुराया, तभी उसके दिमाग में वही बातें गूँजने लगीं, "सच कहूँ तो बहुत बड़ा अन्याय हुआ उसके साथ। मुझे तो लगता है, इसका जीजा भी ठरकी है। सुंदर लड़की देखी नहीं, कि नज़र फ़िसल गई।"

विदाई वाले दिन की बात याद करते ही उसे अपने रिश्ते का अगला कदम 'एक भूल' लगने लगा। उसे यूँ महसूस हुआ, मानो उसने गौरी से किया हुआ अपना आख़िरी वचन भी नहीं निभा सका। वह अपने स्वार्थ में उसका सम्मान भी भूल गया। वह तो मजबूरी में, रिश्ते के लिए इस समर्पण को तैयार हुई होगी, पर उसे तो खयाल रखना चाहिए था।

ग़लतफ़हमी की गिरफ्त में जकड़ा उसका मन उसे धिक्कारने लगा। उसने बिस्तर छोड़ दिया और मुंबई के लिए तैयार होने लगा। वह इतना शर्मिंदा था कि जाते वक़्त उससे नज़रें तक नहीं मिला पाया। लेकिन मुम्बई में ऐसा कोई दिन नहीं गुज़रा जब उसने ग़ौरी को याद ना किया हो। उसे पता ही ना चला कि गौरी कब उसके दिल में आकर बस गई। अब उमा का ख़्याल उसे कभी आता ही नहीं था। अपनी आत्मग्लानि से उबरकर उसने एक-दो बार गौरी को फ़ोन मिलाया था, लेकिन उसने बड़े सुस्त लहज़े में जवाब दिया था मानो वह उससे बात ना करना चाहती हो। महेंद्र को लगा कि उस रात को लेकर ग़ौरी उससे नाराज़ है। फिर एक दिन माँ का फ़ोन आया, जिन्होंने उसे ख़बर दी कि वो बाप बनने वाला है। ख़बर सुनते ही उसकी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। लेकिन एक धक्का भी महसूस हुआ, क्योंकि ग़ौरी ने उसे ये ख़बर नहीं सुनाई थी। वह इस बार भी समझ गया कि ग़ौरी इस खबर से ख़ुश नहीं है; पछता रही होगी उस रात को लेकर। मजबूरियाँ भी कभी किसी को ख़ुशी दी है?

उस दिन से वह अपनी ही नज़रों में गिर गया था। लेकिन जिस रोज़ उसने अपनी बच्ची को गोद में उठाया था उस पल वह सबकुछ भूल गया। उसे बस दो चीजें मालुम थीं; एक तो उसकी बच्ची और दूसरी बच्ची की माँ, यानिकि ग़ौरी। आराध्या के आ जाने पर उसकी जिंदगी में बहार लौट आई थी, और इस बहार को उसकी जिंदगी में लाने का पूरा श्रेय ग़ौरी को जाता था। वह भले ही उससे सात साल छोटी थी, लेकिन जिस समझदारी से उसने उसे और उसके बिखरे हुए दिल को संभाला था।ये कोई उसकी हमउम्र लड़की भी नहीं कर सकती थी। उसका सरल स्वभाव, मीठी बोली, उसका साफ़ दिल, शायद यही सब वजहें थीं कि एक बार फिर से महेंद्र को प्यार में यकीन होने लगा था। उसे ग़ौरी से प्यार हो गया था, ये स्वीकार करने में उसे काफ़ी समय लगा। लेकिन कल अपना कोई सामान खोजते हुए उसकी नज़र अपनी शादी की एल्बम पर पड़ी। अल्बम देखकर, दो साल में गौरी के साथ बिताया हर लम्हा उसकी आंखों के सामने पुनर्जीवित हो उठा। ग़ौरी के लिए अपने प्यार का एहसास होने में उसे एक पल ना लगा। जैसे ही उसे प्यार का एहसास हुआ उसने तुरंत कुछ प्लान कर लिया। वो यूँ ही ग़ौरी से अपने प्यार का इज़हार नहीं करना चाहता था। ग़ौरी ने उसके लिए इतना कुछ किया था। वह भी कुछ करना चाहता था। इसीलिए उसने माँ से बात की थी। मन्दिर में शिव पूजा, उसकी योजना थी। बस उसने कहलवाया माँ से था। ताकि ग़ौरी मना न कर सके। लेकिन फिर भी उसने मना कर दिया! ना जाने क्यों, वो आजकल इतनी परेशान रहने लगी है?

लेपटॉप पर नज़रें टिकाये महेंद्र अभी सोच ही रहा था कि तभी बाथरूम का दरवाजा खुला। आवाज सुनते ही महेंद्र ने नज़रें उठाकर देखा। ग़ौरी की आँखें लाल थीं। पलकें भीगी हुई थी। वह रोई थी। महेंद्र देखते ही समझ गया। वह चुपचाप आकर बेड के दूसरी तरफ़ बैठ गई। अभी भी सिसकियाँ ले रही थी वो। महेन्द्र ने लैपटॉप एक किनारे रखा और उठकर आया, ग़ौरी के क़दमों में बैठ गया, "क्यों रो रही हो? किसी ने कुछ कहा?" आज महेंद्र ने बड़े प्यार से पूछा था। वो खुद को संभाल ना सकी। जवाब देने की बजाय और ज़ोर से रोने लगी।

"अरे ग़ौरी क्या हुआ, बताओ तो," महेंद्र उठकर उसके बगल में बैठ गया। दिल किया कि उसे सीने से लगा ले, लेकिन कुछ संकोचकर ठहर गया।

"मुझे मन्दिर नहीं जाना। मैं झूठा दिखावा करके थक चुकी हूँ," सिसकियाँ लेते हुए ग़ौरी ने दिल की बात बतलाई तो महेंद्र का कलेजा धक से हुआ।

"क्या वह इस रिश्ते को निभाते हुए थक चुकी है? क्या वो उसे छोड़कर जाना चाहती है?" ऐसे तमाम सवालों ने महेंद्र को घेर लिया। ख़ुद को संभालते हुए वह एक ही शब्द कह पाया, "म..म...मतलब..?"

"मतलब साफ़ है। मैं इतने दिन से दिखावा कर रही हूं, पर मैं भगवान से कैसे दिखावा करूँ? आप बताओ, मैं कैसे उन्हें अपनी खुशियों के लिए धन्यवाद दूँ, जब मैं ख़ुश हूँ ही नहीं..." ग़ौरी फफक-फफककर रोने लगी। महेंद्र की सांसें थम गईं। उसका अंदाज़ा सही निकला, गौरी के चेहरे की मुस्कान झूठी थी। जबकि वह उसे सच में मुस्कुराता हुआ देखना चाहता था। लेकिन डरता था, कहीं अपनी खुशियों के बदले वह उससे डिवोर्स ना मांग ले।

"तो फिर, तुम क्या चाहती हो ग़ौरी?" उसने डरते हुए पूछा था। किसी को जबरदस्ती अपने पास कैद तो नहीं किया जा सकता ना।

उसके सवाल पूछते ही गौरी महेंद्र को घूरने लगी। जबकि वह दिल पर पत्थर रखकर उसके जवाब का इंतज़ार कर रहा था, "आप सच में इतने भोले हैं कि जानकर भी अंजान बन रहे हैं?" जवाब में ग़ौरी ने दूसरा सवाल पूछा था। महेंद्र को समझ नहीं आया।

"मतलब..?" महेंद्र के पूछते ही ग़ौरी उसकी बाँह पर चपत लगाते हुए बोली, "मतलब आपको सच में नहीं पता कि मैं क्या चाहती हूँ, हाँ...? क्या आपको नहीं समझ में आता, मैं इतने दिन से जो आपको समझाने की कोशिश कर रही हूं?" कहते हुए उसने महेंद्र का गिरेबान पकड़ लिया। महेंद्र सकपका गया। ग़ौरी की शबनमी आँखें आज जज़्बात छलका रही थीं। वह उसकी आँखों में अपने लिए प्यार देख रहा था। महेंद्र की आंखों में झाँकते हुए ग़ौरी आगे बोली, "आप सवाल पूछते हैं मैं क्या चाहती हूँ? अरे आपको क्यों समझ नहीं आता कि मैं प्यार चाहती हूँ, आपका। मैं चाहती हूँ कि आप मुझे दिल से अपनाएं; फॉरमैलिटी के लिए नहीं।"

उसने महेंद्र का गिरेबान छोड़ दिया और फ़ूटकर रोने लगी। महेंद्र को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ग़ौरी भी उससे वही चाहती है जो वो ग़ौरी से चाहता है। वो इस रिश्ते से दुखी नहीं है, बल्कि वो इस रिश्ते को दिल से अपनाना चाहती है।"

भले ही महेंद्र को यकीन करने में कुछ पल लगे, लेकिन एहसास होते ही उसने रोती बिलखती ग़ौरी को अपनी बाहों में भर लिया। उसके आँसू पोंछते हुए उसने उसे सारी बात बताई कि, किस तरह वह पिछले दो साल से इस गलतफहमी में जी रहा था कि उसने ग़ौरी के साथ अन्याय किया। जबकि इस ग़लतफ़हमी में वो सच मे ग़ौरी के प्यार के साथ, अपने रिश्ते के साथ अन्याय कर रहा था।

"ग़ौरी तुमने मुझे प्यार करना सिखा दिया। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।" अंततः महेंद्र ने पश्चाताप के आँसू बहाते हुए अपने प्यार का इज़हार कर दिया। ग़ौरी की तपस्या सफ़ल हो गई। उसने मुस्कुराते हुए महेंद्र के आँसू पोंछे और उसकी बाहों में समिट गई। अब वो अगली सुबह शिव पूजा के साथ अपने जिंदगी में प्यार का स्वागत करने के लिए तैयार थी।
( समाप्त )


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