Home   |   About   |   Terms   |   Contact    
A platform for writers

औपचारिक रिश्ता

Hindi Short Story

List of all Hindi Stories    22    23    24    25    26    27    28    ( 29 )    
------ Notice Board ----
स्वरचित हिन्दी कहानी प्रतियोगिता - Dec, 2022
Result   Details
--------------------------


औपचारिक रिश्ता
लेखिका- सुरभि सिंह, सेक्टर एच, एल डी ए कालोनी, लखनऊ


Other Parts of this story: Part 1     Part 2     Part 3     Part 4    

# औपचारिक रिश्ता
वह आईने के सामने खड़ी माँग में सिंदूर भर रही थी। कमरे के एक कोने में म्यूजिक सिस्टम रखा था। उसका पसंदीदा गाना बज रहा था। आँखों मे काजल लगाते हुए वह भी गुनगुनाये जा रही थी।
'पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे
कि मैं तन मन की सुध बुध गंवा बैठी..'

श्रृंगार करने के बाद उसने एक नज़र अपने आपको आईने में निहारा। माँग में सिंदूर, माथे पर लाल बिंदी, हाथों में महरून चूड़ियाँ, आँखों मे काजल की मोटी रेख, सब कुछ सही था। उसने नज़र घुमाकर घड़ी की ओर देखा, तो छः बज रहे थे। महेन्द्र के आने का वक़्त हो चला था। एक बार फ़िर से नज़रें फेरकर, ख़ुद को आईने में देखी। अच्छी लग रही थी वो। शायद उन्हें भी अच्छी लगे, मन में आस लिए वह कमरे से बाहर निकल आई।

"अरे उठ गई मेरी परी," कमरे से निकलते ही उसकी नज़र अपनी बच्ची पर पड़ी। पालने में लेटी हुई, खेल रही थी उसकी बच्ची।

"आजा मेरी लाडो..." उसने बच्ची को अपनी गोद में उठा लिया।

"मेरी गुड़िया को भुखू लगा होगा। चलो मम्मा अभी अपनी डॉल को खाना खिलाती है," बच्ची को दुलराते हुए गौरी किचन की तरफ़ बढ़ गई। उसने अपनी बच्ची के लिए दलिया बनाया था । वह जानती थी कि उसे उठते ही भूख लगेगी। अपनी आठ महीने की बच्ची को गोद मे बिठाकर वह दलिया खिलाने लगी। एक बार बच्ची का पेट भर गया तो वह उसकी गोदी से उतरने के लिए मचलने लगी, खेलने की ज़िद कर थी। गौरी ने मस्कुराकर बच्ची को ज़मीन पर उतार दिया। और वह घुटनों के बल कमरे में चहलकदमी करने लगी। अपने अंश को हँसता खिलखिलाता देख ग़ौरी को जो ख़ुशी मिलती थी, उसका कोई मोल नहीं था।

दरवाजे की घण्टी बजी तो उसकी तन्द्रा टूटी। वह बड़ी उल्लास से दरवाजा खोलने उठी थी, मानो जानती हो कि दरवाजे पर कौन है। उसका अंदाज़ा कभी ग़लत हुआ है, जो आज होगा!!

दरवाज़े पर उसका पति महेंद्र खड़ा था, जिसे देखते ही वह आज फिर मुस्कुराई रोज़ की तरह, जिसके जवाब में वह भी मुस्कुराया, लेकिन उसकी मुस्कुराहट औपचारिक थी, रोज की तरह। फिर वह गर्दन झुकाकर घर के अंदर चला आया। वह अभी भी दरवाज़ा पकड़े खड़ी थी। आज फिर अपने पति के चेहरे पर झूठी मुस्कान देखकर, उसकी आस टूटी थी। सम्भलने के लिए कुछ वक़्त तो चाहिए ही था, पर ज्यादा समय नहीं लगा। ये आस टूटना, दिल टूटना, उसे तो इन सबकी आदत सी हो गई थी। कुछ पल बाद वह दरवाजा बंद करके किचन में चली आई; पानी लेकर ड्रॉइंगरूम की तरफ़ बढ़ गई। उसकी बच्ची अपने पापा की गोद में खिलखिला रही थी, जिसे देख गौरी के होठों पर मुस्कुराहट आ गई।

"पानी ले लीजिए," वह गिलास लाकर महेंद्र के सामने खड़ी हुई तो महेंद्र ने एक नज़र उसे देखा, फिर पानी का गिलास लेकर पानी पीने लगा।

"चलो बेबी, पापा अब आराम करेंगें। तुम मम्मा के पास आओ," वह महेंद्र की गोद से बच्ची को उठाने लगी तो उसने टोकते हुए कहा, "रहने दो। दिन भर बाद मिला हूँ अपनी बच्ची से। अभी तो पापा थोड़ा खेलेगें, अपनी आराध्या के साथ," महेंद्र ने बच्ची को गोद में ले लिया और उसे पुचकारते हुए अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गया। ग़ौरी यूँ ही एकटक उसे जाते हुए देखती रही। बच्ची से मिले सिर्फ़ दिन बीता था, पर उससे...

"वो तुम्हें मिला ही कब, बल्कि वो मिलना ही कब चाहता था? तुम तो भरपाई के रूप में उसे मिली थी, जिसे उसने मजबूरी में स्वीकार किया था," वह अपनी क़िस्मत पर मुस्कुराई और किचन की तरफ़ बढ़ गई, चाय बनानी थी उसे।

#
"वाओ!! लड़का तो हैंडसम हैं यार," मण्डप में बैठे दूल्हे को देखकर उसकी सहेली चहक उठी थी। जबकि वो बस मुस्कुराये जा रही थी।

"वैसे करते क्या हैं?"

"डॉक्टर है।"

"तुम्हारी दीदी भी तो डॉक्टर हैं ना?"

उसकी सहेली ने पूछा तो वह शरारती मुस्कान लिए गर्दन हिला दी थी।

"ओ माय गॉड!! कहीं तेरी दीदी की लव मैरिज तो नहीं हो रही?"

"यस, लव मैरिज, जो अरेंज की गई है," उसने मुस्कुरारकर आँख मारी अपनी सहेली को।

"हैं....वो कैसे?" उसकी सहेली जानने के लिए उत्सुक थी, सो वो बताने के लिए। सहेली को पास बुलाकर कानों में फुसफुसाई। बोली, "अरे जीजू ने ये मंदिर वाले पंडित जी को अपनी फ़ोटो दी और नगद-देव के दर्शन करा दिए। फिर क्या था, पण्डित जी दीदी के रिश्ते के लिए जीजू की तस्वीर लेकर पहुंच गए। अब वेल सेटल्ड डॉक्टर लड़के को पापा कैसे छोड़ देते?"

"फिर..?" उसकी सहेली अपनी आंखें फैलाकर पूछी। वह आगे बोलने चली तभी उसके फ़ोन बजा। माँ की कॉल देखते हुए वह जल्दी-जल्दी में बोली, "अब फिर क्या..? दिन शगना दा चढ़िया.." वह गुनगुनाते हुए फ़ोन को कानों में लगाया।

"ग़ौरी...ग़ौरी..." आवाज सुनकर गौरी झटके से अतीत से बाहर निकल आई। उसे सच में कोई आवाज़ दे रहा था। वह चेत गई। उसका ध्यान भगोने पर गया। चाय उबलकर बाहर आने को थी, उसने झट से गैस बंद की।

"गौरी..." उसे फिर पुकारा गया तो 'आई' कहकर वह कमरे की तरफ़ चल दी। अपने पति की पुकार को वो पहचानती थी । बल्कि वो तो हमेशा उनकी पुकार का इंतजार करती थी, लेकिन शादी के दो सालों में महेंद्र ने काम के अलावा उसे कभी पुकारा ही नहीं।

"जी, आप बुलाये थे?" जब वह कमरे में आई तो महेंद्र आराध्या को गोदी में लिए इधर से उधर घूम रहा था।

"हाँ, वो...ये... रो रही है। इसे कुछ खिलाया तुमने?" एक घण्टे हो गए थे, महेंद्र को घर आये हुए और अब जाकर महेंद्र ने ग़ौरी पर नज़र डाली थी।

"वो भी आराध्या की ख़ातिर, और तू रोज़ आईने के सामने अपना वक़्त बर्बाद करती है, बेवकूफों की तरह," सोचकर वह अपनी ही किस्मत पर फिर हँसी।

"कुछ पूछ रहा हूँ तुमसे?" महेंद्र ने फिर पुकारा तो वह उसे आहत नज़रों से देखते हुए बोली, "आपके आने से पहले दलिया खिलाया था। गोदी में इरिटेट हो रही है आजकल। खेलने के लिए छोड़ दीजिए, आराम से खेलेगी।"

"अरे लेकिन ...," महेंद्र कुछ कहने जा रहा था पर वह चुपचाप किचन में चली आई। जानती थी वो, कि महेंद्र क्या कहने वाला था। और क्या कहता, दो-चार बड़े-बड़े अंगेज़ी नाम बताकर बीमारियों और वायरस के खतरे बताता। उस पर अपनी डॉक्टरी का रौब झाड़ता। उसे नहीं देखना था किसी की पढ़ाई का रौब। वो बी.ए. फ़ेल ही अच्छी थी। कम-से कम रिश्ते निभाने की कोशिश तो कर रही थी।

#
"माँ आपने बुलाया था?" वह आई तो बड़ी ख़ुशी से थी, लेकिन कमरे में घुसते ही उसके माथे पर बल पड़ गए। कमरे में उपस्थित सभी लोगों के चेहरे लटके हुए थे।

"हां ग़ौरी, बड़ा गजब हो गया। उमा भाग गई।" माँ के कहते ही गौरी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। लेकिन माँ के अगले शब्दों ने उसके सिर का आसमान भी छीन लिया; वो आसमान जिसमें वह बिना किसी बन्धन के आज़ाद होकर उड़ना चाहती थी। लेकिन उसकी ख्वाहिश पूरी कहाँ हुई! उसे तो शादी के अटूट बन्धन में बंधने के लिए मजबूर कर दिया गया था। ऐसा नहीं था कि उसने ये शादी रोकने की कोशिश ना की हो...
"माँ प्लीज़ मेरी बात समझो। मैं ये शादी नहीं कर सकती।"

"क्यों नहीं कर सकती। बताओ मुझे। आज तक तो कुछ किया नहीं तुमने। अब शादी कर लोगी तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? वैसे भी तुम्हें तो पढ़ना लिखना भी नही है। बी.ए. में फेल होकर बैठी हो..."

"वही तो माँ, मैं बी.ए. फ़ेल हूँ। वो डॉक्टर है। हमारा कोई मेल नहीं है माँ।"

"हे माता! गौरी मेरी बच्ची, शादी में कुण्डली मिलनी चाहिए, डिग्री का कोई फ़र्क नहीं पड़ता।"

डिग्री का कितना फ़र्क़ पड़ता है ये तो गौरी से पूछो, जो आये दिन उसकी डॉक्टरी का रौब देखती है; उसकी हाई प्रोफाइल इंग्लिश समझने के लिए गूगल का सहारा लेती है। और माँ ने कहा था, डिग्री का फ़र्क नही पड़ता!!
Next Part


List of all Hindi Stories    22    23    24    25    26    27    28    ( 29 )    


## Disclaimer: RiyaButu.com is not responsible for any wrong facts presented in the Stories / Poems / Essay or Articles by the Writers. The opinion, facts, issues etc are fully personal to the respective Writers. RiyaButu.com is not responsibe for that. We are strongly against copyright violation. Also we do not support any kind of superstition / child marriage / violence / animal torture or any kind of addiction like smoking, alcohol etc. ##

■ Hindi Story writing competition Dec, 2022 Details..

■ Riyabutu.com is a platform for writers. घर बैठे ही आप हमारे पास अपने लेख भेज सकते हैं ... Details..

■ कोई भी लेखक / लेखिका हमें बिना किसी झिझक के कहानी भेज सकते हैं। इसके अलावा आगर आपके पास RiyaButu.com के बारे में कोई सवाल, राय या कोई सुझाव है तो बेझिझक बता सकते हैं। संपर्क करें:
E-mail: riyabutu.com@gmail.com / riyabutu5@gmail.com
Phone No: +91 8974870845
Whatsapp No: +91 6009890717